
मास्साब से बस यहीं चूक हो गई। … और आश्वासन की डोर पकड़ कर पांच साल से चक्कर काटते रहे। उनके हाथ में पट्टा कब आएगा, यह दावा करना जल्दबाजी होगी। उम्मीद की जा सकती है कि उनका पट्टा जल्द ही उन्हें मिल जाए। अग्रिम बधाई।
– जय एस. चौहान –
कक्षाओं में पाठ पढ़ाना और बिजयनगर नगर पालिका में ‘पाठ’ सीखना दोनों अलग-अलग बातें हैं। तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बावजूद सेवानिवृत उस शिक्षक से बेहतर नगर पालिका के ‘पाठ’ को और कौन जान सकता है जो पिछले पांच वर्ष से पट्टे के लिए चक्कर लगा रहे हैं। ‘कल आना’, ‘आपका काम हो जाएगा’ जैसे शब्द आश्वासन की चाशनी में लपेट कर फरियादियों को थमाने की कला में इस नगर पालिका का कोई सानी नहीं।
विषयों की विद्वता की नगर पालिका परिसर में क्या बिसात है, यह एहसास मास्साब को देर से हुआ। यह स्कूल की कक्षा नहीं जो दो और दो का जोड़ चार ही होगा। यह नगर पालिका है, दो और दो का जोड़ यहां चार, पांच और तीन भी हो सकता है। यह यहां आने वाले फरियादियों पर निर्भर करता है। मास्साब से बस यहीं चूक हो गई। … और आश्वासन की डोर पकड़ कर पांच साल से चक्कर काटते रहे। उनके हाथ में पट्टा कब आएगा, यह दावा करना जल्दबाजी होगी।
उम्मीद की जा सकती है कि उनका पट्टा जल्द ही उन्हें मिल जाए। अग्रिम बधाई। और हां। औपचारिकताएं पूरी करने में भी इस नगर पालिका का कोई सानी नहीं। खारीतट संदेश में समाचार प्रकाशित होने पर नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय खेल मैदान में जिस तरह नगर पालिका प्रशासन ने औपचारिकताएं पूरी वह इसका ‘उम्दा’ मिसाल है या फिर ‘उसूल’ यह शोध का विषय है। एक बार नहीं दो-दो बार। कभी झाड़-झंखाड़ हटा दिए तो कभी इस खेल मैदान में नालियों के पानी पर मिट्टी डाल दी।
लो हो गई औपचारिकताएं पूरी। गंदगी आज भी मुंह चिढ़ा रही है। फरियादियों की बात छोडि़ए, यहां तो जनप्रतिनिधियों तक की आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह गूंज कर रह जाती है। यहां तो ऐसे ही चलता है। नगर पालिका में कार्यप्रणाली का यही ढर्रा रहा तो ‘विकास’ को कुंभ के मेले में ढूंढने जैसा ही साबित होगा।