
शिवांगी कानावत निशानेबाजी में और गणेश अहीर ने वेटलिफ्टिंग में मेडल जीत कर यही साबित किया है। कम संसाधन और विपरित परिस्थितियों में धैर्य, अनुशासन, लगन, रणनीति और समर्पण से ही इन प्रतिभाओं ने राज्य सहित अपने क्षेत्र का नाम रौशन किया है। यह गौरव की बात है।
डेढ़ जीबी डाटा और मुफ्त वाइस कॉल के इस दौर में मोबाइल से चिपके रहने वाली भीड़ से इतर कुछ ‘लोग ऐसे भी हैं जो अपनी मंजिल के लिए अपनी सीढिय़ां खुद बनाकर लक्ष्य हासिल करते हैं। यही कुछ लोग ‘प्रतिभाएं कहलाती हैं। उन्हीं प्रतिभाओं में से शिवांगी कानावत और गणेश अहीर भी हैं। शिवांगी कानावत निशानेबाजी में और गणेश अहीर ने वेटलिफ्टिंग में मेडल जीत कर यही साबित किया है। कम संसाधन और विपरित परिस्थितियों में धैर्य, अनुशासन, लगन, रणनीति और समर्पण से ही इन प्रतिभाओं ने राज्य सहित अपने क्षेत्र का नाम रौशन किया है। यह गौरव की बात है।
राजकीय स्तर पर हमारी प्रतिभाओं को संसाधान उपलब्ध कराए जाएं तो क्षेत्र की प्रतिभाओं को और निखरने का अवसर मिलेगा। स्कूली स्तर से ही संसाधन उपलब्ध कराया जाए तो इसमें और इजाफा हो सकता है। कहीं थोड़ी-बहुत संसाधन हैं तो शारीरिक शिक्षक नहीं होते, जहां शारीरिक शिक्षक होते हैं वहां पर संसाधन नहीं होते। … और जहां शारीरिक शिक्षक व संसाधन होते हैं वहां पर खेल मैदान नहीं होता। … और जहां पर खेल मैदान होता भी है तो वह अतिक्रमण की चपेट में है या फिर पूरी तरह से उपेक्षित है। नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय का खेल मैदान जिस तरह उपेक्षा का शिकार है वह हमारी व्यवस्था का नमूना है। इन्हीं व्यवस्थाओं के बीच संघर्ष कर शिवांगी और गणेश जैसी प्रतिभाओं ने क्षेत्र का नाम रौशन किया है।
खैर, बात-बात पर रैली-धरना व प्रदर्शन करने वाले संगठनों को चाहिए कि इन खेल प्रतिभाओं को सम्मानित करे। मेडल की चमक सम्मानित मंच से बिखरेगी तो दबी हुई प्रतिभाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनेगी। प्रतिभाएं निखरेंगी।
जय एस. चौहान