
नई दिल्ली। सात राजनीतिक दलों के महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस के बाद न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा देश के पहले ऐसे मुख्य न्यायाधीश बन गये हैं, जिनके खिलाफ ऐसा नोटिस आया है। इससे पहले विभिन्न न्यायालयों के पांच न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस आये हैं, लेकिन दो के खिलाफ ही प्रस्ताव पर चर्चा हुई थी।
देश के इतिहास में सबसे पहली बार पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वी रामास्वामी को महाभियोग प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था। न्यायमूर्ति रामास्वामी पर 1993 में महाभियोग की कार्यवाही शुरू की गई थी, हालांकि लोकसभा में लाये गये महाभियोग प्रस्ताव के समर्थन में दो-तिहाई बहुमत नहीं जुट पाया था और प्रस्ताव गिर गया था।
साल 2011 में राज्यसभा ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश सौमित्र सेन को वित्तीय गड़बड़ी करने और तथ्यों की गलतबयानी करने का दोषी पाया था। इसके बाद उच्च सदन ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया था। लोकसभा में, हालांकि महाभियोग की कार्यवाही शुरू किए जाने से पहले ही न्यायमूर्ति सेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
साल 2015 में राज्यसभा के 58 सदस्यों ने गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जे बी पर्दीवाला के खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया था। यह नोटिस आरक्षण के मुद्दे पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ एक मामले में फैसले को लेकर दिया गया था।
महाभियोग का नोटिस राज्यसभा के तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी को सौंपे जाने के कुछ ही घंटों बाद न्यायमूर्ति पर्दीवाला ने फैसले से अपनी टिप्पणी वापस ले ली थी। भूमि पर कब्जा करने, भ्रष्टाचार और न्यायिक पद का दुरुपयोग करने को लेकर जांच के दायरे में जो एक अन्य न्यायाधीश आए थे, उसमें सिक्किम उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश पी डी दिनाकरण का नाम आता है। उन्होंने अपने खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू होने से पहले ही 2011 में पद से इस्तीफा दे दिया था।
वर्ष 2016 में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नागार्जुन रेड्डी को लेकर एक विवाद पैदा हो गया था। एक दलित न्यायाधीश को प्रताड़ित करने के लिए अपने पद का दुरुपयोग करने को लेकर राज्यसभा के सदस्यों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए एक नोटिस दिया था। बाद में कुछ सदस्यों ने अपने हस्ताक्षर वापस ले लिये थे, जिसके कारण यह आगे नहीं बढ़ा।