
सिंगापुर। (वार्ता) सिंगापुर की यात्रा पर गये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज नान्यांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में छात्रों को संबाेधित किया और उनसे इक्कीसवीं सदी को एशिया की सदी बनाने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने विश्वविद्यालय में छात्रों के साथ खुलकर बातचीत की और उनके सवालों के बेबाकी से जवाब दिये।
इक्कीसवीं सदी में एशिया के समक्ष चुनौतियों से जुडे एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह अक्सर कहा जाता है कि 21वीं सदी एशिया की सदी होगी। लेकिन इसके लिये आवश्यक है , “हम स्वयं पर भरोसा रखें और हमें यह जानना चाहिए कि अब हमारी बारी है। हमें अवसर के अनुरूप अपने को तैयार करना चाहिए और इसका नेतृत्व करना चाहिए।” श्री मोदी ने चीन यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने इस दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग को एक दस्तावेज़ सौंपा, जो बताता है कि पिछले 2,000 वर्षों में से 1,600 वर्षों के दौरान वैश्विक जीडीपी में भारत और चीन की सम्मिलित हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से अधिक रही है और इसे बिना संघर्ष के हासिल किया गया था। प्रधानमंत्री ने कहा कि अब हमें बिना संघर्ष के कनेक्टिविटी बढ़ाने पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
श्री मोदी ने कहा कि बेहतर प्रशासन के क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को विशेष भूमिका निभानी है। यह आम लोगों के जीवन को बेहतर बना सकती है। परंपरा और वैश्वीकरण में संतुलन से संबंधित प्रश्न पर उन्होंने कहा कि नवोन्मेष, नैतिकता और मानवीय मूल्यों के आधार पर सदियों से मानवता ने विकास किया है। प्रौद्योगिकी मानवीय रचनात्मकता को सहायता प्रदान कर रही है। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्मों ने लाखों लोगों को अपने विचार व्यक्त करने का मौका दिया है। चाैथी औद्योगिक क्रांति में समावेशी विकास सुनिश्चित करने पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि व्यवधान का अर्थ विनाश नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी लोगों को सशक्त बनाती है तथा प्रौद्योगिकी आधारित समाज, सामाजिक बाधाओं को समाप्त करता है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी को सस्ता और उपयोगकर्ता अनुकूल होना चाहिए। उन्होंने याद दिलाया कि कभी लोग कम्प्यूटर के प्रति आशंकित रहते थे, परन्तु कंप्यूटरों ने हमारे जीवन को बदल कर रख दिया है।