
पटरी पार बिजली की स्थिति ‘अतिथि’ की तरह है, कब आए और कब चली जाए, कहा नहीं जा सकता। घंटों बिजली गुल की समस्या से यहां के लोग परेशान हो चुके हैं, लेकिन कहीं कोई सुनने वाला नहीं।
बारिश सभी को सुकून दे, यह जरूरी नहीं। कम से कम पटरी पार वाले सात वार्डों के निवासी और वार्ड नंबर 24 निवासी शांतिबाई को यह कतई भ्रम नहीं है। आंधी तो दूर, हवा का हल्का झोंका या फिर बरसात होते ही पटरी पार बिजली गुल हो जाती है। पटरी पार बिजली की स्थिति ‘अतिथि’ की तरह है, कब आए और कब चली जाए, कहा नहीं जा सकता। घंटों बिजली गुल की समस्या से यहां के लोग परेशान हो चुके हैं, लेकिन कहीं कोई सुनने वाला नहीं।
जनप्रतिनिधियों को भी ‘फाल्ट’ का बहाना बनाकर टाल दिया जाता है तो फिर आम आदमी की क्या बिसात। बिजली विभाग के अधिकारी व कर्मचारी आमजनों का फोन तक रिसीव करना मुनासिब नहीं समझते। देर शाम बिजली गुल होने से रसोर्ई का जायका खराब हो जाता है, स्कूली बच्चे पढ़ नहीं पाते, बुजुर्ग विवश हो जाते हैं, लेकिन बिजली विभाग के कर्मचारी व अधिकारियों को इसका अहसास नहीं।
इसी तरह पिछले चार वर्षों से बारिश में शांतिबाई की परेशानी दोगुनी हो जाती है। जीना मुहाल हो जाता है। जनप्रतिनिधि व अधिकारी उनकी पीड़ा जानने आते तो हैं, लेकिन उनकी समस्या जस की तस बनी हुई है।
अधिकारियों का आश्वासन कागज की नाव की तरह बारिश के पानी में आगे निकल जाता है। शहर में बिजली के तार झूल रहे हैं, हादसे हो रहे हैं, लेकिन फाल्ट ढूंढने के नाम पर इन झूलते तारों को दुरुस्त नहीं किया जा रहा। शनि मंदिर के निकट विद्युत ट्रांसफार्मर के झूलते तारों की चपेट में आने से गोवंश की मौत हो गई, लेकिन आज भी हालात जस के तस हैं। लोगों की शिकायतों पर अमल नहीं हो रहा।
आखिर, आमजनों की फरियाद को सुनेगा कौन? आमजन अपनी फरियाद लेकर जाएं तो जाएं कहां? इस सवाल का जवाब शहर का हर आम आदमी एक-दूसरे के चेहरे में ढूंढ रहे हैं। बेचारगी का आलम यह है कि आम लोग विवश हैं, और संबंधित विभाग के अधिकारी व कर्मचारी बेफिक्र हैं। आखिर, संबंधित विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय की जा रही? आखिर कब तक लोग यूं ही बिजली की आंख-मिचौली से जूझते रहेंगे। इस सवाल का जवाब पटरी पार के लोग ढूंढ रहे हैं। आप भी ढूंढिए…।
– जय एस. चौहान –