
बिजयनगर। (खारीतट सन्देश) स्थानीय स्वाध्याय भवन में रविवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए श्रद्धेय श्री प्रमोद मुनि जी म.सा. एवं पूज्य श्री योगेश मुनि जी म.सा. ने परमार्थ की ओर अग्रसर होने का सन्देश ‘जिनवाणी’ के माध्यम से देते हुए कहा कि श्रद्धा-श्रद्धालु-श्रद्धेय के भेद को समझना है इन तीनों में विशेष स्थान श्रद्धालु को है और वही श्रद्धा को स्थान देता है। हाँ यदि आप श्रद्धेय है तो ज्ञानी फरमाते है कि उस स्थिति में आचार विचार में बहुत ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत है। श्रद्धालु को श्रद्धेय का अम्पा-पिया (माता-पिता) को बताया और उनका कार्य ‘लाड और ताड़’ है।
वह श्रद्धेय के शरीर की साता के लिये लाड करे परन्तु उनके सिद्धान्तों एवं संयम यात्रा में कचावट को दूर करने में ‘ताड़’ का भी ध्यान रखें। चाहे वह नाराज भी हो जाये क्योंकि पानी ढ़लान में जाने के बाद रूकता नही है। माँ के हाथ की ‘चपत और चपाती’ दोनों ही हमें ताकत देती है। जो राज की बात (मुक्ति का मार्ग) बताये वही ‘महाराज’ होता है। जो महाराज होता है वह नाराज नहीं होता और जो नाराज होता है वह महाराज नही होता। ‘ताड’ की आवश्यकता लगे तो विनयपूर्वक बिना झिझक के साथ कहने में कोई बुराई नही है आज इस पंचम आरे में श्रद्धालु के कारण ही साधक बिगड़ रहा है एक साथक को साधक बनने में कितना समय लगता है अत: साधु नही बन सकते तो उन्हें बिगाड़ों मत। धर्मसभा में कस्बें सहित आस-पास के क्षेत्रों के कई श्रावक-श्राविका मौजूद थे।