
पहल : मृत्युभोज बंद करने के लिए ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय पदाधिकारी सुजीत शर्मा की साहसिक पहल को साधुवाद
बिजयनगर। सुजीत शर्मा ब्राह्मण समाज के राष्ट्रीय पदाधिकारी हैं। इन्होंनें मृत्युभोज बंद करने की शुरुआत अपने ही घर से बंद करके पूरे राष्ट्रीय स्तर पर ब्राह्मण समाज को अच्छा सन्देश दिया है। वैसे मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है इस पर पाबंदी सख्ती के साथ की जानी चाहिए। क्योंकि निम्न और मध्यम वर्ग के व्यक्ति के लिए मृत्युभोज करने पर अतिरिक्त भार पड़ता है। व्यक्ति पहले से अपनों को खोकर दु:खी रहता है और उसके बाद मृत्युभोज करने से उस पर अतिरिक्त भार पड़ता है।
राजेश तिवाड़ी, अध्यक्ष श्री गुर्जर गौड़ ब्राह्मण नवयुवक मंडल, बिजयनगर
मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है, इसे हर-हाल में बंद करना चाहिए। एक तो परिवार में एक सदस्य हमेशा-हमेशा के लिए बिछुड़ जाता है और उनके पूरे दिनों पर कर्जा लेकर समाज को सामूहिक भोज दिया जाता है, यह कैसी परम्परा है। मैं मृत्युभोज के पूर्ण प्रतिबंध के पक्ष में हूं। दूसरा मैं सभी समाजबंधुओं से आह्वान करता हूं कि यदि हम सभी लोग यह प्रण करें कि हमें किसी भी मृत्युभोज में नहीं जाना है तो यह सामाजिक बुराई यानि मृत्युभोज स्वत: ही बंद हो जाएंगे।
धीरेन्द्र चाष्टा, अध्यक्ष- ब्राह्मण महासभा, मसूदा
मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है। इसे हर-हाल में बंद किया जाना चाहिए। इसे सख्ती के साथ बंद करने के लिए सभी समाजबंधुओं को पहल करनी चाहिए। समाज में व्याप्त कुरीतियों की वजह से समाज प्रगति नहीं कर पाता हैं। मैं मृत्युभोज के पाबंदी के पक्ष में हूं और सभी समाज बंधुओं से इस कुरीति को बंद करने में सहयोग का आह्वान करता हूं।
कैलाशचन्द व्यास, अध्यक्ष- हुरड़ा गुलाबपुरा तहसील
समाज में मृत्युभोज जैसी गलत परम्परा बंद होनी चाहिए। सुजीत शर्मा ने जो निर्णय लिया मैं उसके समर्थन में हूं। आगामी ५ अगस्त को निकटवर्ती राताकोटा गांव में आसपास के 52 गांवों के समाज के पदाधिकारीगण बैठक आयोजित करेंगे जिसमें मैं मृत्युभोग को सख्ती के साथ बंद करने का प्रस्ताव रखूंगा और प्रस्ताव पास करवाने का प्रयास करूंगा। ताकि समाज से मृत्युभोज जैसी कुरीति समाप्त की जा सके।
लाड़लीप्रसाद जोशी, अध्यक्ष, श्री गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज, बिजयनगर
मृत्युभोज एक सामाजिक बुराई है। सुजीत शर्मा ने जिस प्रकार से मृत्युभोज बंद कर समाज में प्रेरणा दी है वह साहसिक कार्य है। मैं मृत्यभोज बंद के समर्थन में हूं। व्यक्ति कर्ज लेकर सामाजिक परम्पराओं को निभाने के चक्कर में अपना भविष्य कर्ज में उलझा देता है। ऐसी कुरीति खत्म होनी चाहिए। व्यक्ति को मृत्युभोज न करके जो भी सांसारिक रीति हो उसे कम से कम करते हुए संक्षिप्त तौर पर सम्पादित करन देनी चाहिए। मृत्युभोज हमारे समाज में एक बुराई है।
राजेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष, श्री गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज सभा
मृत्युभोज हमारे समाज के लिए बड़ी बुराई है, शादियों व उत्सवों में यदि समाज को भोज दें, कपड़े पहनावेे या गिफ्ट दे तो अच्छा भी लगता है, लेकिन मृत्युभोज में समाज को सामूहिक भोज, कपड़े पहनाना, लाण बांटना बिलकुल गलत परम्परा है। मैं पूर्ण रूप से इसके खिलाफ हूं। समाज में मृत्युभोज की पाबंदी पूरी सख्ती के साथ लगाई जानी चाहिए। मृत्युभोज करने के चक्कर में गरीब व्यक्ति अपने घर-बार, जेवरात सब गिरवी रखकर एक सामाजिक परम्परा जो सदियों से चली आ रही थी उसे निभाते-निभाते अपना भविष्य खराब कर देता है।
विजयलक्ष्मी पाराशर, बिजयनगर
समाज में वर्षों से चली आ रही मृत्युभोज जैसी परम्परा का बंद होना आवश्यक है। इस सम्बंध में मैंने तीन-चार लोगों से चर्चा भी की है। आने वाले दिनों में कार्यकारिणी की बैठक में इस मुद्दे पर पाबंदी लगाने को लेकर विचार-विमर्श किया जाएगा। एक तरफ तो परिवार में से एक सदस्य बिछुड़ जाता है, पूरा परिवार शोक में डूबा रहता है। वहीं दूसरी ओर परिवार द्वारा पूरे दिन पर समाज को सामूहिक सहभोज देना , लाण बांटना, रिश्तेदारों को कपड़े देना एक तरह से उस परिवार के साथ अन्याय करने के बराबर है। उस परिवार पर क्या बीतती है, यह तो परिवार ही जानता है। एक गरीब, मध्यमवर्गीय परिवार के लिए मृत्युभोज करना बहुत बड़ी बात होती है। इससे उसका घर- खेत, जेवर तक गिरवी हो जाते हैं। इसलिए इस सामाजिक बुराई को बंद करना आवश्यक है।
विष्णुप्रसाद शर्मा, अध्यक्ष, विप्र समाज, बिजयनगर
जरूरी है पहल, देर से दुरुस्त कदम
निश्चित ही यह पहल न केवल अनुकरणीय है बल्कि साहसिक भी है। अनुकरणीय इसलिए कि समय के साथ इस तरह की कुरीतियों को बंद करना जरूरी है, और सभी समाज को इसका अनुकरण करना चाहिए। साहसिक इसलिए कि जब भी कोई रुढीवादी परम्पराएं टूटती हैं तो जोर की ‘आवाज’ होती है। कुछ-कुछ बिजली कड़कने जैसी। स्मरण होगा कि बाल-विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियां तोडऩे की पहल की गई तो किस तरह शोरगुल हुआ। मृत्युभोज ठीक उसी तरह की कुप्रथा है जो हिन्दू समाज को खोखला कर रही है। मृत्युभोज में अधिक से अधिक खर्च कराने की जुगत में घूमने वाले समाज के ठेकेदारों को चिन्हित कर सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने का भी साहस करना चाहिए। चूंकि ब्राह्मण समाज हिन्दू समाज का धार्मिक रूप से प्रतिनिधित्व करता है, ऐसे में ब्राह्मण समाज की जिम्मेदारी कहीं अधिक है।
मृत्युपरांत कर्मकांड कराने वाले ब्राह्मणों को भी 11 सौ अथवा अधिक से अधिक 21 सौ रुपए लेने के लिए पाबंद करना चाहिए, वर्ना कुरीतियों पर वार न केवल अधूरा होगा बल्कि अतिश्योक्ति नहीं तो यह भेदभावपूर्ण भी होगा। मृत्युभोज के बजाय बेहतर है समाज के ही किसी बेटी को पढ़ाने का संकल्प लिया जाए अथवा किसी अनाथ या आर्थिक रूप से कमजोर को शिक्षित किया जाए। किसी स्कूल में कम्प्यूटर व अन्य पाठ्य सामग्री देना भी पुण्य ही तो है। ब्राह्मण समाज को इस पर भी विचार करना चाहिए। ब्राह्मण समाज की यह पहल देर से ही सही पर दुरुस्त जरूर है। कुरीतियों पर चोट पर पर मुकम्मल हो, तभी परिणाम सार्थक होंगे।