
बिजयनगर । महान तत्व चिंतक प्रमोद मुनिजी म.सा. एवं योगेश मुनिजी म.सा. इन दिनों स्थानीय रेलवे फाटक के निकट महावीर भवन में धर्मसभा में श्रावकों को धर्म और धर्म के विविध पहलुओं की बारीकियां समझा रहे हैं। श्रावकों को आत्मोत्थान के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जिनवाणी के विविध आयामों से श्रावकों को पुरुषार्थ और परमार्थ, संयम और तप, मोह और मोक्ष के बारे में अपनी दृष्टि से अवगत करा रहे हैं। दूर-दूर से आने वाले श्रावक यहां पूरे मनोभाव से धर्मसभा का लाभ ले रहे हैं।
तत्चचिंतक प्रमोदमुनि एवं मधुर वक्ता योगेशमुनि म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि जीव के लिए जिनवाणी उद्धार करने वाली है और जिनवाणी के रहस्य को हृदयांगन व सार व आत्मसात् करने के लिए वीतराग भगवन्तों ने इस सत्य को याद रखा कि ‘भेजने वाला भटकता नहीं।‘ सत्य ही भगवान है और भगवान ही सत्य है। हमारी दृष्टि सही तो हम निहाल हैं और दृष्टि गलत तो बेहाल हैं। इस जीव का निजी गुण ‘अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन है।‘ यह जीवन खोने और रोने के लिए नहीं मिला है। पाप धोने के लिए मिला है। श्रद्धेय प्रमोदमुनि जी म.सा. ने कहा कि बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज तेजी से घटने वाला धर्म यदि कोई है तो वह है ‘जैन धर्म’ है। हमें इस पर विचार करना हमारे वेष में जो विचारों में गिरावट आ रही है, उसे दूर करने के सुदृढ़ प्रयास करने पड़ेंगे तब कहीं जाकर हम कुछ कर पाएंगे।
जिसने राग को जीत लिया वह वीतरागी
मुनिवृंद ने धर्मसभा में कहा कि जो राग रहित है या जिसने राग को जीत लिया वह वीतरागी है। इसलिए हमारे मन में उनके प्रति अनुराग उमड़ता है। उन्होंने कहा कि भगवान अत्यन्त सौन्दर्यवान होते हैं। यदि आपका राग शांत हो जाए तो सौन्दर्य श्रेष्ठ बन जाएगा। अरिहंत भगवान की स्तुति मात्र से तीर्थंकर नाम कर्म का उदय हो सकता है। भगवान ने स्वयं अपने पुरुषार्थ से गुण प्रकट किए ऐसा ही पुरुषार्थ हमें करना है।
पूजा के योग्य कौन: जो कषायों से रहित हो चुके हों।
साधक कौन: जो अपने प्रति होने वाली बुराई को देखे या जाने, जो दोष देखे नहीं जाने। नहीं, वह साधक नहीं हो सकता। अपने भीतर के दोषों को देखने से सरलता प्रकट होती है।
बाहरी साधना से जीवन की पूर्णता नहीं
मुनिवृंद ने कहा कि वीतराग भगवान तीनों लोकों में पूजित होते हैं। वीतराग भगवन तो ‘सुर-असुर-नर’ तीनों में वन्दनीय और पूजनीय होते हैं। वीतराग भगवान के जन्म से विशिष्ट यश नाम कर्म का उदय होता है। रोटी की भूख एक हद तक शांत हो जाती है मगर ‘नाम’ की भूख कभी शांत नही होती है पूर्ण ज्ञानियों की पूजा अर्चना कर अपूर्णता को मिटाना है इस कार्य को करने के लिए भीतर में खलबली मचानी पड़ेगी। बाहरी साधना से जीवन की पूर्णता नहीं मिल सकती। इस संसार में २ का ही राज चलता आया है। (1) मोहनीय कर्म (2) जिनराज मनुष्य भव अति दुर्लभ (अधिकतम 7 भव) है। तू स्वयं अनन्त सुखों का भंडारी है और पुद्गल से सुख चाह रहा है। हे जीव, इन्द्रियों के सुख में धर्म नहीं है।
ज्यादा जानने वाला विद्वान, ज्यादा मानने वाला ज्ञानवान
महान तत्वचिंतक श्रद्धेय प्रमोदमुनि जी म.सा. एवं योगेशमुनि जी म.सा. ने धर्मसभा में कहा कि हे, धर्मानुरागी बन्धुओं, सम्यकत्व के बिना समस्त क्रियाएं शून्य हैं, इसके बगैर क्रियाएं व्यर्थ ही नहीं अनर्थ भी बन जाती है। सम्यक् दृष्टि जीव संसार में रहता है मगर उसका निवाल संसार में नहीं होता। हमें हेय और देय उपादेय इसका सदस्य समझना है, जो ज्यादा जानता है वह विद्वान होता और जो ज्यादा मानता है वह ज्ञानवान होता है। आचरण से ही तेय रहता है, जिसका अन्तकरण जागृत होता है वह स्वयंबुद्ध होता है। तीर्थंकर भगवान जन्म से ही तीन ज्ञान (मति-श्रुति-अवधि) के धारी होते हैं। पहले गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण कराई जाती थी और आज की शिक्षा में बुद्धि का विकास तो हो रहा है, मगर ज्ञान घटता जा रहा है। गुरुकुल में ज्ञान के साथ छात्र को बुना भी जाता था। इसी शिक्षा के कारण इंसान पद- पैसा -प्रतिष्ठा के गर्व में धंसता-फंसता जा रहा है। तत्वों के प्रति हमें सम्यकत्व श्रद्धा के साथ रखना है। जिस पाप को करने के लिए जीव को अन्दर से पीड़ा हो वह सम्यकत्वी है। हमें जाकनारी से ज्यादा आचरण पर ध्यान देना है। आज मनुष्य योनि में हमें सम्बोधि मिल रही है, वह अत्यन्त दुर्लभ है। अनेकों आगर पार कट चौपाटी तक आ गए हैं, अब इसे चौपट नहीं करना है। जागो…. जागो…। इस विज्ञानी के पीछे कितना विनाश करोगे। शस्त्र छोड़ो, शास्त्र जगा रहे हैं….
‘समझ सुधारो मोक्ष पधारो’
‘नहीं करना बुराई वहीं
है सच्ची समाई’
अष्टपदजी की भावयात्रा
बिजयनगर। स्थानीय जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक श्री संघ के तत्वावधान में महावीर बाजार स्थित श्री संभवनाथ जैन मंदिर में साध्वी शीलमालाश्री जी म.सा. एवं रत्नमालाश्री जी म.सा. की निश्रा में अष्टापदजी तीर्थ जो अभी दिश्यमान नहीं हैं, उनकी भावयात्रा करवाई। श्री संघ ने हर्षोल्लास के साथ ही प्रभू की आरती की। प्रेमबाई कोठारी परिवार ने और उद्घाटनकर्ता एवं बंूदी सेवका माथा के लाभार्थी केशरसिंह, सुनिल कुमार कोठारी परिवार ने लाभ लिया। इस अवसर पर अध्यक्ष भंवरलाल मांडोत, पारसमल गेलड़ा, तेजराज गादिया, विनोद दुगड़, कार्यकारिणी अध्यक्ष विमल कोठारी, अमरचन्द लोढ़ा, भागचन्द छाजेड़, मंगलचन्द श्रीश्रीमाल, सुधीन्द्र चौधरी, महिला मंडल की उर्मिला गादिया, श्रीमती पुष्पा गोखरू, शकुंतला कोठारी, आराधना कोठारी, सरला गोखरू आदि मौजूद रहे। यह जानकारी संघ मंत्री टीकमचन्द गोखरू ने दी।