
मसूदा विधानसभा क्षेत्र
मसूदा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस से लगातार चार बार चुनाव लडऩे वाले राव नारायण सिंह का दबदबा था। वे लगातार चारों बार चुनाव जीते। विधानसभा में उपाध्यक्ष और मंत्री भी रहे। स्वच्छ छवि और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी राव साहब को टिकट मिलते ही चुनाव का पूरा प्रबंध व्यापारियों के जिम्मे ही होता था। इसके बाद भाजपा से कृष्णगोपाल कोगटा ही लगातार दो बार यहां से चुनाव जीत सके हैं। खारीतट संदेश ने अतीत के पन्नों को खंगाला तो कुछ इसी तरह के तथ्य सामने आए। प्रस्तुत है खारीतट संदेश की विशेष रिपोर्ट…
बिजयनगर । राजस्थान विधानसभा का मसूदा विधानसभा क्षेत्र अपने आप में अनूठा विधानसभा क्षेत्र है। राज्य में 1957 में जब से विधानसभा के चुनाव होना शुरू हुए तबसे लेकर 1977 तक मसूदा रियासत के राव नारायणसिंह लगातार 4 विधानसभा चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट पर विधायक निर्वाचित हुए। वे राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष व राज्य के शिक्षामंत्री भी रहे। उन्हीं के नाम पर बिजयनगर में राजकीय नारायण उच्च माध्यमिक विद्यालय है।
उनके कद का नेता उनके बाद इस विधानसभा क्षेत्र में आज तक नहीं मिला। इसके बाद भाजपा के किशनगोपाल कोगटा 1990 व 1993 में लगातार 2 बार भाजपा के टिकट से निर्वाचित होकर विधायक चुने गए। स्व. राव नारायणसिंह और क्षेत्र में पहली बार भाजपा का खाता खोलने वाले किशनगोपाल कोगटा ही क्षेत्र के ऐसे विधायक हैं जिन्हें जनता ने दो या दो से अधिक बार अपना जनप्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में भेजा। इन दो नेताओं के बाद कोई भी विधायक यहां से दुबारा नहीं चुना गया।
आज भी कांग्रेस के राव साहब और भाजपा के कोगटाजी के नाम अनूठा रिकॉर्ड कायम है। अब भविष्य बताएगा कि इनका अतीत कोई दोहरा पाएगा या नहीं। 1957 में कांग्रेस के उम्मीदवार राव नारायणसिंह ने जब पहली बार चुनाव लड़ा तो उन्हें 15 हजार 171 वोट मिले और उनके निकटतम उम्मीदवार पांचूलाल को 4 हजार 141 वोट मिले। इसी के साथ राव साहब को क्षेत्र के पहले विधायक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वर्ष 1962 में राव नारायणसिंह ने अपने निकटतम उम्मीदवार फतेहसिंह को, 1967 में मोहनसिंह को तथा 1972 में बृजमोहनलाल को पराजित किया। वर्ष 1957 से 1977 तक राव नारायणसिंह मसूदा से लगातार चार बार विधायक निर्वाचित हुए।
वे विधानसभा उपाध्यक्ष और शिक्षामंत्री भी रहे। अपने समय में वह कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। 1977 में जब जनता पार्टी वजूद में आई और जनता का कांग्रेस से मोहभंग होने लगा तो राव नारायणसिंह ने नामांकन दाखिल नहीं किया और कांग्रेस ने भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार नूरा कठात को समर्थन दिया। इस चुनाव में नूरा कठात को 18 हजार 70 व जनता पार्टी के उम्मीदवार गंगासिंह को 13 हजार 502 मत मिले। चुनाव में जनता लहर के बावजूद नूरा कठात यहां विजयी घोषित हुए तो मसूदा विधानसभा क्षेत्र के चुनाव ने पूरे प्रदेश की जनता को एक तरह से चौंका दिया।
1980 में कांग्रेस के अयाज महाराज ने भाजपा के प्रत्याशी एवं पूर्व मंत्री रहे स्व. रमजान खान को पराजित कर जीत दर्ज की। 1985 तक क्षेत्र में भाजपा अपना पूर्ण वर्चस्व नहीं बना पाई थी। भाजपा ने आरएसएस से जुड़े किशनगोपाल कोगटा को प्रत्याशी बनाया तो कांग्रेस ने सोहनसिंह को टिकट देकर उनके खिलाफ मैदान में उतारा इस चुनाव में भी भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। सोहनसिंह यहां से विधायक चुने गए। 1990 में भाजपा ने एक बार फिर किशनगोपाल कोगटा को प्रत्याशी बनाया। वहीं कांग्रेस ने वर्तमान डेयरी सदर रामचन्द्र चौधरी को उनके खिलाफ मैदान में उतारा। इस चुनाव में रामचन्द्र चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा।
इसी के साथ किशनगोपाल कोगटा कांग्रेस के अभेदगढ़ मसूदा विधानसभा क्षेत्र को भेदने में कामयाब हुए और क्षेत्र में पहली बार भाजपा का झण्डा बुलंद कर विधानसभा में पहुंचे। कोगटा अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरे नहीं कर पाए और वर्ष 1993 में विधानसभा के मध्यावधि चुनाव घोषित हो गए। इस पर पार्टी ने एक बार फिर कोगटा को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा तो कांग्रेस ने उनके खिलाफ हाजी कय्यूम खान को मैदान में उतारा। इस चुनाव में एक बार फिर कोगटा ने जीत दर्ज की और लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए। 1998 में भाजपा ने कोगटा का टिकट काटकर मसूदा के पूर्व प्रधान प्रहलाद शर्मा को अपना उम्मीदवार घोषित किया।
वहीं कांग्रेस ने कोगटा से पिछले चुनाव में पराजित हुए हाजी कय्यूम खान को एक बार फिर अपना प्रत्याशी घोषित कर मैदान में उतारा। इस बार कय्यूम खान चुनाव जीतने में सफल रहे और विधायक चुने गए। वर्ष 2003 में इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए राजनीति में माहिर खिलाड़ी एवं जिले के पूर्व सांसद विष्णु मोदी को भाजपा का टिकट देकर मैदान में उतारा। कांग्रेस ने उनके खिलाफ हाजी कय्यूम खान को अपना प्रत्याशी घोषित किया। इस चुनाव में मोदी को 45 हजार 517 और हाजी कय्यूम खान को 36 हजार 107 वोट मिले। यहां से विष्णु मोदी विधायक चुने गए।
2008 में कांग्रेस ने जहां रामचन्द्र चौधरी को अपना प्रत्याशी घोषित किया वहीं भाजपा ने नवीन शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच कांग्रेस में बागी ब्रह्मदेव कुमावत ने भी चुनाव में ताल ठोक दी। इस त्रिकोणीय मुकाबले में ब्रह्मदेव कुमावत अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र चौधरी को शिकस्त दे दी। इसके बाद 2013 में भाजपा ने सुशील कंवर पलाड़ा को अपना प्रत्याशी घोषित किया तो कांग्रेस ने उनके खिलाफ ब्रह्मदेव कुमावत को मैदान में उतारा।
इस चुनाव में विशेष बात यह रही कि डेयरी सदर रामचन्द्र चौधरी ने जहां कांग्रेस से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल कर दिया। वहीं भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष नवीन शर्मा ने भी अपनी पार्टी को बगावती तेवर दिखाते हुए निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में ताल ठोंक दी। यह मुकाबला चतुष्कोणीय रहा। चुनाव में भाजपा की सुशील कंवर पलाड़ा ने 34 हजार 11 वोट प्राप्त कर जीत दर्ज की।
आगामी 7 दिसम्बर को राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा वर्तमान विधायक सुशील कंवर पलाड़ा को एक बार फिर मैदान में उतारेगी या किसी नए उम्मीदवार को मौका देगी, इसका खुलासा तो जल्द ही होगा तब तक कयासों का दौर जारी है। वहीं पिछले चुनाव में हार का स्वाद चख चुकी कांग्रेस मसूदा सीट पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए किस प्रत्याशी पर दांव लगाएगी, यह भविष्य के गर्त में है। फिलहाल हाजी कय्यूम खान, ब्रह्मदेव कुमावत व देहात जिला कांग्रेस अध्यक्ष भूपेन्द्रसिंह राठौड़, पालिकाध्यक्ष सचिन सांखला क्षेत्र का बार-बार दौरा कर अपनी ढपली-अपना राग की तर्ज पर चल रहे हैं।
राव के नसीब में जीत, चौधरी के हार
मसूदा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार निर्वाचित हुए विधायक राव नारायणसिंह का जादू क्षेत्र की जनता पर 1957 से 1977 तक छाया रहा। वे लगातार 4 चुनाव जीत कर अटूट रिकॉर्ड कायम करने में कामयाब रहे। वहीं 2 बार डेयरी सदर रामचन्द्र चौधरी व 2 बार हाजी कय्यूम खान इस विधानसभा क्षेत्र में हार का स्वाद चख चुके हैं।
राव साहब का नामांकन और जीत की गारंटी
वर्ष 1957 से 1977 तक जब तक क्षेत्र में राव नारायणसिंह का दबदबा था तो हालात ऐसे थे कि राव साहब का नामांकन दाखिल करना ही कांग्रेस की जीत की गारंटी माना जाता था। उस समय राजनीतिक दलों को मतदाताओं को लुभाने के लिए भारी भरकम खर्चे की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। राव साहब के प्रचार की कमान उस समय के प्रमुख व्यापारी सम्भालते थे। राव साहब अत्यंत सरल स्वभाव के एवं क्षेत्र के लोगों के दुलारे थे। इसी वजह से वे जब भी चुनाव लड़ते तो अजेय ही रहते थे।
राव नारायणसिंह वर्ष मसूदा विधानसभा क्षेत्र से 1957, 1962, 1967 तथा 1972 में कांग्रेस के टिकट पर लगातार चार चुनाव जीते। 1957 में पांचूलाल को, 1962 में फतेह सिंह को, 1967 में मोहनसिंह को तथा 1972 में बृजमोहनलाल को शिकस्त देकर विधानसभा पहुंचे। इसी तरह भाजपा के टिकट पर कृष्ण गोपाल कोगटा ने वर्ष 1990 तथा 1993 में चुनाव जीते। इससे पूर्व 1985 में कोगटा हार का स्वाद चख चुके थे।
हार से सबक ली, और दो बार लगातार चुनाव जीते-कोगटा
जब मुझे पहली बार विधानसभा चुनाव लडऩे का टिकट मिला था तब मैं रोजमर्रा की तरह दुकान पर ही बैठा हुआ था। एकाएक मुझे मसूदा विधान सभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे का टिकट मिला। मैंने तीन बार मसूदा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा तीनों बार ही टिकट आगे होकर मुझे मिला। मैं स्वयं टिकट लेने कहीं नहीं गया। पहले चुनाव में मुझे हार का सामना करना पड़ा। लेकिन पहली हार से सीख लेते हुए मैंने अगले दो चुनावों में जीत हासिल की।