
मेले में जुटी भीड़ ने नगर पालिका प्रशासन के इस आयोजन पर ‘सफलता’ का मुहर लगा दिया। जाहिर है, जनता के इस मुहर से नगर पालिका प्रशासन का हौसला बुलंद है।
भारतीय संस्कृति में पर्व-त्यौहारों पर आयोजित होने वाले मेले श्वांस की तरह है। मेले का आयोजन देश की संस्कृति को ही नहीं समाज को भी जीवंत बनाए रखने में महती भूमिका निभाता रहा है। हम भारतीयों को इस बात पर सदैव गर्व करना चाहिए कि कुंभ मेले जैसा भव्य आयोजन पूरे विश्व में कहीं नहीं होता। कोटा व निम्बाहेड़ा में आयोजित होने वाले दशहरा मेला इसका उदाहरण है। गुलाबपुरा के बाद अब बिजयनगर भी दशहरा मेले की सूची में शामिल हो गया है। इसके लिए इस सफल आयोजन में हाथ बंटाने वाले सभी लोग बधाई के पात्र हैं। साथ ही मेले में जुटी भीड़ व कवि सम्मेलन में कविताओं का रसानंद लेने वाले श्रोता भी बधाई के पात्र हैं। कवियों की रचनाओं पर दाद देने में यहां के लोगों ने भी कोई कंजूसी नहीं बरती।
खारी नदी के दोनों किनारों पर बसे गुलाबपुरा व बिजयनगर के लोग धर्मप्रिय ही नहीं शांतिप्रिय भी हैं। गुलाबपुरा में पहले से ही दशहरा महोत्सव का आयोजन होता रहा है। इस वर्ष बिजयनगर नगर पालिका प्रशासन ने इस कमी को दूर कर दिया। नगर पालिका प्रशासन द्वारा आयोजित बिजयनगर में प्रथम दशहरा महोत्सव शानदार रहा। व्यवस्थाएं अनुकूल रहीं, जिसकी सराहना शहरवासी मुक्तकंठ से कर रहे हैं। निसंदेह आशंका थी कि मेले का आयोजन महज दस्तूर न बन कर न रह जाए। लेकिन मेले में जुटी भीड़ ने नगर पालिका प्रशासन के इस आयोजन पर ‘सफलता’ का मुहर लगा दिया। जाहिर है, जनता के इस मुहर से नगर पालिका प्रशासन का हौसला बुलंद है।
मेले के आयोजन को लेकर दूसरे पहलुओं पर भी गौर किया जाना चाहिए। मेले में यदि कोई बच्चा गुब्बारा लेकर मुस्कुराता है तो गुब्बारे बेचने वाले के घर चूल्हा भी जलता है। इन मेलों में स्थानीय कलाकारों को अपनी कला और संस्कृति प्रदर्शित करने का अवसर भी मिलता है। मेले में स्टाल लगाने वालों को अपने उत्पाद बेचने का अवसर ही नहीं उन्हें रोजगार भी मिलता है। इसी तरह मेलार्थियों को इन मेलों में नए-नए उत्पादों से रूबरू होने का अवसर मिलता है। इसलिए, खारीतट संदेश भी इस बात का पैरोकार है कि इस तरह के मेले का आयोजन होते रहना चाहिए।
– जय एस. चौहान –