
श्रीनगर। उत्तराखंड के बडेना (पिथौरागढ़) के रहने वाले सिपाही राजेंद्र सिंह ने अपनी शहादत देकर अलगाववादियों, तथाकथित मानवाधिकारवादी संगठनों और कश्मीर के उन राजनीतिक दलों को कड़ा जवाब दिया है, जो अक्सर घाटी में सेना पर अत्यधिक बल प्रयोग की दुहाई देते हैं। शहीद राजेंद्र सिंह की शहादत पर अब ये सभी खामोश हैं, क्योंकि जवान की जान उन्हीं पत्थरबाजों ने ली, जिन्हें ये लोग मासूम कहते हैं।
सेना की क्विक रिएक्शन टीम (क्यूआरटी) को सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों व कर्मियों के वाहनों के काफिले की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था। सिपाही राजेंद्र सिंह सेना के इसी दस्ते का हिस्सा थे। वाहनों का काफिला जब जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित अनंतनाग में टी-जंक्शन के पास पहुंचा तो आतंकियों व अलगाववादियों की समर्थक हिंसक भीड़ ने पथराव शुरूकर दिया।
सिपाही राजेंद्र सिंह व उनके साथियों ने अपने वाहन से नीचे आकर पथराव कर रही भीड़ को चेतावनी देते हुए रास्ता खाली करने को कहा, लेकिन किसी ने नहीं सुनी और पथराव की तीव्रता बढ़ गई। फिर भी जवानों ने संयम बरता और गोली नहीं चलाई। इसी दौरान एक पत्थर सिपाही राजेंद्र सिंह के सिर पर लगा और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उनके अन्य साथियों ने तुरंत उन्हें वाहन में पहुंचाया और किसी तरह पथराव कर रही भीड़ में से सभी वाहनों को वहां से निकाला।
राजेंद्र सिंह को उपचार के लिए श्रीनगर स्थित सेना के 92 बेस अस्पताल में दाखिल कराया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।चाहते तो गोली चला सकते थे। जवान प्रवक्तारक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता कर्नल राजेश कालिया ने कहा कि अगर सिपाही राजेंद्र सिंह और उनके साथी चाहते तो वे पथराव कर रही भीड़ पर गोली चला सकते थे और लाठियों का इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन सभी यही मानकर शांत रहे कि ये अपने ही बच्चे हैं। इन पर गोली चलाना या लाठी चलाना उचित नहीं है। उन्होंने संयम बरता और सिपाही राजेंद्र सिंह शहीद हो गए।