
कार्तिक कृष्णा अमावस्या की मध्य रात्रि को हुआ था भगवान महावीर स्वामी का परिनिर्वाण
घेवरचन्द जैन। जैन धर्म को मानने वाले कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिवस को अपने चौबीसवें तीर्थंकर प्रभू महावीर का निर्वाण कल्याणक दिवस के रूप में त्याग, तपस्या, जप, धर्म-ध्यान आदि करके मनाते हैं। प्रभू महावीर ने राजपाट छोड़कर युवावस्था में संयम धारण किया था तथा पावापुरी के सम्राट हस्तीपाल की भावभरी प्रार्थना को स्वीकार कर प्रभू महावीर ने अपने जीवन का अंतिम चातुर्मास उनकी पौषधशाला पावापुरी में किया।
भगवान महावीर ने अपने जीवन के अन्तिम समय में निरन्तर सोलह प्रहर तक अर्थात कार्तिक कृष्णा अमावस्या की मध्य रात्रि जब प्रभू का परिनिर्वाण हुआ उसके पहले 48 घंटों तक यानी 2 दिन और 2 रात तक निरन्तर प्राणी मात्र के कल्याण के लिए लिच्छवी गणराज्य के समस्त राजा महाराजाओं-जन समुदाय, इन्द्र, देवताओं को व सभी जीवों को भव्य देशना प्रदान की। भगवान महावीर की यह अंतिम देशना थी जो कि जैन आगमों के उत्तराध्ययन सूत्र के रूप में हमें पढऩे को मिलती है।
इस देशना में सभी इन्द्र, सकेन्द्र, देवियां व देवता भी उपस्थित थे। जिस समय भगवान निर्वाण को प्राप्त हुए तब इन्द्रों, देवताओं ने निर्वाण महोत्सव मनाया। इस महोत्सव में देवरत्नों से सुयोग से पूरा वातावरण रोशन हुआ। देव दुन्दुभी से तथा उचित फलों, मणी व रत्नों सुशोभित हुआ। इसी याद में भगवान महावीर के द्वारा प्ररूपित धर्म जो आज जैन धर्म के नाम से जाना जाता है, के मानने वाले जैन धर्म के सभी अनुयायी इस निर्वाण कल्याणक दिवस के रूप में त्याग, तप, जप करके प्रतिवर्ष मनाते हैं।
कई श्रावक श्राविका तीन दिन का उपवास करके प्रभु के गुणगान, स्तुति करते हैं। भाव पूजा प्रतिष्ठा अनुष्ठान करते हैं। जैन मंदिरों में विशेष पूजा पाठ किए जाते हैं। साधु संत भगवान महावीर की अंतिम देशना को अपने प्रवचनों में श्रवण कराते हैं। जैन धर्मावलम्बी भगवान की अंतिम वाणी को सुनने के लिए जैन स्थानकों, उपासरों में साधु सन्तों के प्रवचन में बड़े श्रद्धाभाव से उपस्थित होते हैं। बिजयनगर में भी आचार्य श्री हीराचन्द्रजी म.सा. के आज्ञाकारी सन्त तत्व चिंतक प्रमोद मुनि जी म.सा. एवं मधुर व्याख्यानी योगेश मुनि जी म.सा. आदि ठाणा 4 के द्वारा 7 व 8 नवम्बर को सुबह 08:30 से तथा 8 नवम्बर को सुबह 7 बजे से भगवान की अन्तिम वाणी को महावीर भवन में प्रवचन सभा में फरमाएंगे।
प्रभु महावीर ने अपनी अन्तिम देशना में विनय, परीषह-विजय चार अंगों की दुर्लभता, आयुष्य टूटने पर उसे पुन: जोड़ा जा सकता, अकाम-मरण, ग्रंथियों से मुक्त साधु, परिग्रह और आसक्ति लोभ की अभिवृद्धि, नमि राजर्षि संयम, अप्रमाद, बुहुश्रुत, हरिकेशी मुनि, चित्त और संभूत, राजा इषुकार, सभिक्षुक, ब्रह्मचर्य- समाधि स्थान, पाप-श्रमण, राजा संयति, मृगा पुत्र, महा निग्रंन्थ, अनाथी मुनि, समुद्रपाल, अरिष्ट नेमी-राजीमती-रथनेमि केशिश्रमण-गणधर गौतम संवाद, अष्ट प्रवचन माता, यज्ञ, समाचारी, अविनीत, मोक्षमार्ग, सम्यक्त्व पराक्रम, तप मार्ग, चरण विधि प्रमाद स्थान, कर्म प्रकृति, लेश्या, अणगार मार्ग, जीव-अजीव विषयों पर अपनी भव्य देशना प्राणी मात्र के कल्याण के लिए अपने निर्वाण के ठीक पहले 48 घंटों तक निरन्तर प्रदान की थी, जिसे सुनकर न केवल जैन धर्म को मानने वाले ही नहीं, अपितु सभी जैनेन्तर बंधुगण भी सुनकर अपने जीवन को सफल बनाकर उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं।