रूप चतुर्दशी पर स्नान करने से मिलती है तन की शुद्धि

  • Devendra
  • 06/11/2018
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नई दिल्ली। शरीर की शुद्धि के लिये जल से स्नान की वैदिक परंपरा है, सरोवर, सरिता के बहते स्तोत्रों और कूपों के ठहरे स्वच्छ और शीतल जल से स्नान का वर्णन धर्म शास्त्रों में किया गया है। धर्मग्रंथों में कई तरह के स्नान का वर्णन किया गया है,जिसके तीन भेद प्रमुख है। नित्य, नैमित्तिक और काम्य। ‘नैमित्तिक’ स्नान ग्रहण, अशौच आदि में किया जाता है। प्रमुख तीर्थों में किया जाने वाला स्नान ‘काम्य’ कहलाता है। ‘नित्य’ स्नान को प्रतिदिन का धार्मिक कृत्य माना गया है।

इसके अतिरिक्त गौण स्नान का भी शास्त्रों में वर्णन किया गया है, जो सात प्रकार के हैं।
मान्त्र – (मंत्र से स्नान) ‘आपो हिष्ठा’ यानी वेद मंत्रों से किया गया स्नान मान्त्र स्नान कहलाता है।
भौम – (मिट्टी से स्नान) सूखी मिट्टी शरीर पर मल कर किया गया स्नान भौम स्नान कहलाता है।
आग्नेय – ( अग्नि से स्नान) पवित्र भस्म को शरीर पर लगा कर किया गया स्नान आग्नेय स्नान कहलाता है।
वायव्य – ( वायु से स्नान) गायों के खुरों से उड़ने वाली धूल को शरीर पर गिरने देने से होने वाला स्नान वायव्य स्नान कहलाता है।
दिव्य – ( आकाश से स्नान) धूप निकलते समय वर्षा में किया गया स्नान दिव्य स्नान कहलाता है।
वारुण – ( जल से स्नान ) नदी-कूप आदि के जल में किया गया स्नान वारुण स्नान कहलाता है।
मानस – (मानसिक स्नान) विष्णु भगवान के नामों का स्मरण कर किया गया स्नान मानस स्नान कहलाता है।

निरोगी, कमनीय और खूबसूरत काया के लिये आवश्यक है कि प्रतिदिन स्नान कर शरीर को अशुद्धियों से मुक्त कर स्वच्छ किया जाए। स्नान करते समय शास्त्रों के कुछ नियमों को यदि ध्यान में रखा जाये तो चमकती-दमकती त्वचा के साथ कुशाग्र बुद्धि और मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।

ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के पूर्व तारों की छाया में स्नान करने से परेशानियों और कुत्सित विचारों वाली शक्तियों से मुक्ति पाई जा सकती है साथ ही लक्ष्मी की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय गुरूमंत्रों, स्तोत्र, कीर्तन, भजन या भगवान के नाम का स्मरण करने से अक्षय पुण्यों की प्राप्ति होती है।

ब्रह्म स्नान – जो लोग सुबह सूर्योदय के पूर्व रात्रि के अंतिम प्रहर और भोर होने से पहले, 4 और 5 बजे के बीच स्नान करते हैं उसको ब्रह्म स्नान कहते हैं। ब्रह्म स्नान से देवी-देवताओं की कृपा के साथ जीवन से सुख और खुशियों का समावेश होता है।
देव स्नान – सूर्योदय के उपरांत किया जाने वाला स्नान देव स्नान कहलाता है। देव स्नान में भगवान के नाम का स्मरण करते हुए स्नान किया जाता है। देव स्नान से जीवन में आने वाली कठिनाईयों का निवारण होता है।
यौगिक स्नान – योग के माध्यम से अपने इष्ट का चिंतन और ध्यान करते हुए जो स्नान किया जाता है वह यौगिक स्नान कहलाता है। यौगिक स्नान को आत्मतीर्थ भी कहा जाता है क्योंकि ऐसा स्नान तीर्थ स्नान भी कहलाता है, जो तीर्थयात्रा के समकक्ष माना जाता है।
दानव स्नान – किसा पेय पदार्थ या भोजन करने के पश्चात किया गया स्नान दानव स्नान कहलाता है। दानव स्नान से जीवन में घोर विपत्तियों का सामना करना पड़ता है।
प्राप्तिः गुणा दश स्नान परस्य साधो रूपञ्च तेजश्च बलं च शौचम्।

आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं दु:स्वप्रनाशश्च यशश्च मेधा:।।

शास्त्रों में सूर्यौदय के पूर्व या सूर्योदय के समय स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है। सूर्योदय के पूर्व किया गया स्नान तन, मन और मस्तिष्क तीनों को तरोताजा करने वाला होता है। आइये जानते हैं सूर्योदय पूर्व किये गये स्नान के फायदे।

ज्ञान और ऊर्जा – सूर्योदय के पूर्व किये गये स्नान से शरीर, मन और बुद्धि को तेज की प्राप्ति यानी चैतन्यता, ज्ञान और ऊर्जा मिलती है।
रूप-सौंदर्य – रूप सौदर्य में निखार आता है।
मानसिक शक्ति – मानसिक बल की प्राप्ति होती है।
पवित्रता – मन, विचार और कर्म पावन होते हैं।
आरोग्य – स्वास्थ्य उत्तम और शरीर बलिष्ठ होता है।
बुद्धि और विवेक – उचित-अनुचित में भेद की समझ और निर्णय क्षमता का विकास होता है।
सुयश – यश-कीर्ति की पताका सर्वस्व फहराती है।

शास्त्रों में कहा गया है कि श्रीहरि विष्णु के आदेश से सूर्योदय से अगले 6 दंड यानी लगभग ढाई घंटे की शुभ घड़ी तक जल में सारे देवता व तीर्थ वास करते हैं। यदि हम इस समय स्नान करेंगे तो अवश्य ही लाभान्वित होंगे।

स्नान तन-मन की शुद्धि के साथ शारीरिक और मानसिक रूप से तरोताजा होने की एक शास्त्रोक्त परंपरा है, जो पौराणिक काल से सनातन संस्कृति का भी अहम हिस्सा रहा है। घर के आंगन से लेकर पवित्र नदी और सरोवरों में स्नान को शास्त्रों में बहुत महत्व दिया गया है। जल शुद्धिकरण का सर्वोच्च साधन है, लेकिन इसके साथ दूसरे पदार्थों से स्नान का भी महिमामंडन वैदिक ग्रंथों में किया गया है।

आग्नेय भस्माना स्नानं, सलिलेन तु वारुणम् ।

आपोहिष्ठेति च ब्राह्म्म् वायव्यं गोरजं स्मृतम् ।।
भस्म, आग्नेय, जल द्वारा स्नान वारुण, आपोहिष्ठा इत्यादि मंत्र से स्नान ब्रह्म और गोधूलि वेला में किया गया स्नान वायव्य कहलाता है।
आरोग्यं ऐश्वर्यम् वर्धते सर्वदेहीनाम् रुद्राध्यायेन ये देवं।

स्नापयाति महेश्वरं तज्जैल: कुर्वते स्नानं ते मृत्युं संतरिन्त च।।

रुदाध्याय के अनुसार जल से स्नान करने पर आरोग्य, ज्ञान और ऐश्वर्य में वृद्धी होती है। मृत्यु से भी मोक्ष मिलता है।
न जलाप्लुत देहस्य स्नान मित्यभिधीयते।

स स्नातो यो दमनस्या: शुचि: शुद्धमनोमल:।।

जल में शरीर डुबो लेना ही स्नान नहीं कहलाता है। जिसने इंद्रीय दमन रुपी तीर्थ में स्नान किया है, मन को वश में कर रखा है, उसी ने वास्तव में स्नान किया है, जिसने मन का मैल धो डाला वही शुद्ध है। ‘नारदीय पुराण के अनुसार पवित्र स्नान से यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है। ‘अग्नि पुराण के अनुसार जल स्नान के नित्य, नैमित्तिक, काम्य, क्रियांग, मलापर्षक और क्रिया छ: प्रकार है। महाभारत में कहा गया है कि स्नान करने वाले को बल, रूप, स्वर और वर्ण की शुद्धि, स्पर्श और गंध की शुद्धता, एश्वर्य, कोमलता और सुंदर स्त्री प्राप्त होती है। वैदिककाल से ही जलदेवता वरुण की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है। वास्तव में पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान से पापों का नाश और पूण्य कमाने की भावना वरुणदेव के प्रत्यक्ष दर्शन की भावना से जुड़ी है। इसके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति एक धार्मिक भावना और चैतन्यता के साथ मुक्ति की खोज करता है।

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