बिजयनगर। स्थानीय निवासी योगेन्द्रराज सिंघवी एक सफल उद्यमी और सामाजिक सरोकार से जुड़े ऐसे सख्सियत हैं जिस पर बिजयनगर के लोगों को गर्व करना चाहिए। हालांकि उनका कर्मक्षेत्र मुंबई है और उनके उद्योग-व्यापार का विस्तार कर्ई महानगरों के अलावा दुबई तक फैला हुआ है। इसके बावजूद वे हर माह अपनी जन्मभूमि की माटी की सोंधी महक से तरोताजा होते हैं, उन्हें यहीं सुकून भी मिलता है। बिजयनगर के इस माटी के लाल से खास बातचीत की है खारीतट संदेश के संपादक दिनेश ढाबरिया ने…।
आपको अपने पूर्वज की धरती से लगाव बरकरार है, इस बारे में नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
जन्मभूमि की विशेषता अलग ही होती है। जन्मभूमि को कभी भूलना नहीं चाहिए। 27 वर्ष से मुंबई में रह रहा हूं और इसलिए मुंबई मेरा कर्मक्षेत्र है। पिताजी के आशीर्वाद से ही यह सब कुछ हो पाया है। हर व्यक्ति को अपनी जन्मभूमि से माता (जननी) की तरह लगाव होना चाहिए। इसीलिए मुझे आज भी मुंबई से अधिक लगाव बिजयनगर से है। मैं महीने में 7-8 दिन बिजयनगर ही रहता हूं। कई लोग जन्मभूमि को भूल जाते हैं, यह परिपाटी गलत है।
कर्मक्षेत्र में किस तरह आपने अपना समाज विकसित किया है?
बिजयनगर से सैकड़ों लोग मुम्बई में अपना व्यापार करते हैं। हम सभी लोग एक-दूसरे से मिलकर अपने सुख-दुख बांटते हैं और यदि कोई समस्या में हो तो उसकी हरसंभव मदद भी करते हैं। वैसे यहां से जितने भी लोग मुम्बई गए हैं वे सभी सम्पन्न व सक्षम हैं।
धर्म के साथ-साथ सामाजिक सरोकार के लिए और क्या-क्या काम
करते हैं?
विशेषत: यदि किसी भी व्यक्ति को इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती है तो उसे हर सम्भव मदद करते हैं। मुम्बई में एक सरकारी विद्यालय के 250 बच्चों के सुबह-शाम के खाने की वार्षिक व्यवस्था की हुई है। मुम्बई में 40 ऐसे जैन परिवार हैं जिनको सहायता की दरकार है उनकी सहायता हम लोगों ने एक वासू पूज्य जैन मंदिर ट्रस्ट कांदीवली में बनाकर ट्रस्ट के माध्यम से उन परिवारों के लिए महीने भर का राशन और 2000 रुपए आर्थिक सहायता सहायता की जा रही है। गुजरात राज्य में घुमंतू जातियों के लिए आवास, शिक्षा, चिकित्सा आदि सुविधाओं की कार्ययोजना पर काम कर रहे हैं।
ऐसा व्यवहार सिर्फ आपका ही है या पूरे परिवार का हैं?
मेरा पूरा परिवार सेवाभावी है। समाजिक सरोकार के कार्य करने की प्रेरणा मेरी पत्नी शशि सिंघवी से मिली है। मेरी पत्नी सामाजिक सहायता के कार्यों में मुझे पूरा सहयोग करती हैं। पिताजी ने अंतिम समय में सीख दी, ‘जीवन में कितनी भी कामयाबी पाओ लेकिन अपने अस्तित्व को मत भूलना और विनम्रता नहीं खोना।
मुम्बई आधुनिक शहर है। आपको सबसे ज्यादा सुकून कहां मिलता है?
मुझे सबसे ज्यादा सुकून बिजयनगर में ही मिलता है। इसका उदाहरण इसी से ही मिलता है कि मेरा मुम्बई से आना कन्फर्म होता है लेकिन बिजयनगर से जाना कभी भी कन्फर्म नहीं होता। बिजयनगर में मेरे दोस्तों (लंगोट्ये यारों) का जो प्यार, इज्जत, अपनापन मुझे मिलता है, वही मुझे बार-बार मुम्बई से यहां खींच लाता है।
अपनी संस्कृति को बचाने के लिए आप नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगे?
अपने माता-पिता की सेवा करो। अपने से बड़ों की पूरी बात सुनो, पश्चिमी संस्कृति से परहेज करो, मंदिर जाएं और साधु-संतों के बीच रहना सीखें। अपने से जुड़ी हर बातें परिजनों को बताएं।
इनको मिले हुए पद
अध्यक्ष- नाकोड़ा पाश्र्वनाथ भैरव मंदिर मंडल ट्रस्ट, बिजयनर
पूर्व निदेशक- जैन सोश्यल ग्रुप, बिजयनगर
उपाध्यक्ष- श्री पीकेवी हॉस्पीटल, बिजयनगर
सदस्य- लायंस क्लब, महावीर इंटरनेशनल, बाड़ीमाताजी ट्रस्ट मंडल, बिजयनगर
सदस्य- वासू पूज्य जैन मंदिर ट्रस्टी
सदस्य- पियुष पाणी पाश्र्वनाथ तीर्थ, गौड़ बंदर
व्यापार क्षेत्र
डायमंड का व्यापार – मुम्बई, सूरत, दुबई, गोल्ड का व्यापार – मुम्बई, कुशल फाईनेंस, बिजयनगर