कहीं निर्माण कार्य रुका, तो कहीं बेरोजगार हो गए मजदूर
बिजयनगर-गुलाबपुरा सहित आसपास के क्षेत्रों में बजरी किल्लत का असर अब दिखने लगा है। बजरी की किल्लत ने भवन निर्माण की रफ्तार थाम ली है। दिहाड़ी मजदूरी करने वालों लोग बेरोजगार हो गए हैं। शहर में निर्माण कार्य की रफ्तार धीमा होने से गांवों से आने वाले श्रमिकों को बिना काम किए बेरंग लौटना पड़ रहा है। बजरी मिल भी रही है तो दाम आसमान पर है। क्षेत्र में बजरी संकट से उपजे हालात पर खारीतट सन्देश की रिपोर्ट…
10 में 5 दिन ही काम मिल पाया
मैं रोजाना 8 किमी. दूरी तय कर मजदूरी के लिए पिछले 25 वर्षों से यहा आ रहा हूं। मुझे 10 दिनों में पांच दिन का ही काम मिल पाया है। कोर्ट द्वारा जब से बजरी पर रोक लगी है उसके बाद तो काम मिलना मुश्किल हो गया है। कारखाने के काम तो चल रहे हैं लेकिन बजरी सप्लाई नही होने से चाल नहीं है। ऐसे में हमें कभी-कभार बैरंग लौटना पड़ रहा है। मेरे परिवार में पांच सदस्य हैं। और कमाने वाला एक। घर खर्च चलाने के लिए जैसे-तैसे व्यवस्था करनी पड़ती है।
दामोदर शर्मा, बेलदार-बड़ली
मैं पिछले 6-7 वर्षों से कारीगरी का कार्य कर रहा हूं। नोटबंदी के बाद से रोजाना काम मिलना बंद सा हो गया है। वरना पहले पूरे महिने काम मिलता था। अभी बजरी बंद होने से काम की चाल नहीं मिल पा रही है। परिवार में सात सदस्य हैं, कमाने वाले दो भाई हैं। मैैं कारीगरी का काम करता हूं और दूसरा भाई ड्राइवर है। दोनों जनों को महीने में 20 दिन ही काम मिलता है।
मुरली बैरवा, कारीगर, तारों का खेड़ा
काम मिलना मुश्किल हो गया
मैं पिछले 16 वर्ष से ठेकेदारी का कार्य कर रहा हूं। पहले आसानी से अच्छा काम मिल जाता था लेकिन जबसे बजरी खनन पर रोक लगी तबसे काम मिलना मुश्किल हो गया है। कारीगर की रेट पहले 700 रुपए तक थी अभी 500 हो गई है। बेलदार भी पहले के मुकाबले कम रेट पर मिल रहे हैं। बेरोजगारी बढ़ गई। मेरे परिवार में 8 सदस्य हैं और कमाने वाला मैं अकेला हूं। जैसे-तैसे करके खर्चा चला रहे हैं।
रतनलाल चीता, ठेकेदार, बिजयनगर
मेरे को महीने में 20 ही मजदूरी मिलती है। बजरी बंद होने से हालत और भी खराब हो गए हैं। इसके चलते आधे से ज्यादा दिन तो मुझे गांव में ही खेत पर जाना मुनासिब लग रहा है।
सम्पतसिंह, बैलदार देवलियां खेड़ी
मैं पिछले 20 सालों से मजदूरी का कार्य कर रही हूं। मेरे घर में हम दो मां-बेटे रहते हैं। बेटा कुछ भी कार्य नहीं करता है, उसका भी पेट में ही भरती हूं। महीने में 20 दिन भरते हैं उसी से ही काम चल रहा है। रोजाना चौखटी पर जाते हैं, जिस दिन काम नहीं मिलता तो रोटी का टिपन लेकर घर आना पड़ता है। घर खर्च चलाने के लिए जैसे-तैसे व्यवस्था बिठा रखी है। -प्रेम देवी, तारों का खेड़ा, बिजयनगर
काम रोकना पड़ गया
भवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ तब मैं ख्रर्चे का पूरा बजट बनाकर ही काम चालू किया था। काम चालू करने के दूसरे ही दिन बजरी खनन पर कोर्ट ने रोक लगा दी। बजरी के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन बजरी मिल ही नहीं रही। मजबूरन मुझे कुछ दिनों के लिए काम रोकना पड़ गया।
प्रफ्फुल पारीक, भवन मालिक केकड़ी रोड़, बिजयनगर
चौपट हो गया है धंधा
कारीगर को पूरी मजदूरी देनी पड़ती है भले ही काम आधे दिन का हो या पूरे दिन का। भवन मालिक से तो हमारा ठेका हो रखा है उतने दिनों में काम करके देना है, लेकिन कोर्ट ने जब से बजरी खनन पर रोक लगाई है तब से धंधा चौपट हो गया है। आलम यह है कि कारीगर भी करनी छोड़कर हथौड़ा लेकर तोड़-फोड़ के काम में लग गया है। बजरी बंद होने से मजदूरी की दरों में काफी कमी आई है, पहले 600 रुपए थे अभी 500 में काम करने को तैयार है। बेलदार तो 350 के बजाय 250 में भी काम करने का इच्छुक है। कारण मजदूरी मिल ही नहीं रही। कारीगर और बेलदार खाली हाथ हो गए हैं। बजरी की ट्रोली पहले 1200 में आती थी अभी 3000 में भी नसीब नहीं हो रही, वहीं डम्फर के 15000 रेट हैं।
पूरणमल बैरवा, ठेेकेदार, बिजयनगर
पहले बजरी की ट्रोली 1400 रुपए तक मिल जाती थी। बजरी पर रोक लगने के बाद कोई भी ट्रैक्टर वाला बजरी देने को तैयार नहीं है। आगे के काम के लिए बजरी नहीं होने से जो आवश्यक कार्य है उतना ही करके बाकी का काम रोक दिया है।
सुरेन्द्र रावत, तारों का खेड़ा
काम नहीं मिल रहा
मैं रोजाना 22 किलोमीटर दूर से आता हूं। काम के लिए रोज चौखटी पर खड़ा रहता हूं, लेकिन महीने में सिर्फ 15 दिन का ही मिलता है। परिवार में 5 सदस्यों का पेट पालने वाला एक सदस्य मैं ही हूं। जैसे-तैसे घर चला रहा हूं। मजदूरी की रेट में बजरी की रोक के बाद पहले की रेट में और अभी की रेट में अंतर आया है। लोगों को काम नहीं मिल रहा है।
महावीर कुमावत, कारीगर