संयुक्त राष्ट्र। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने चेतावनी दी है कि नकली और तय मानकों से कम स्तर की दवाएं रोगों से बचाव और उपचार करने में नाकाम साबित हो रही है तथा ये विकासशील देशों में अधिक प्रचलन में है। सभी देशों की सरकारों को इस वैश्विक समस्या से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टैड्रोस ऐडरेनॉम गैबरेयेसस ने जिनेवा में जन स्वास्थ्य और इसके सामाजिक आर्थिक प्रभावों पर शोध और ग्लोबल सर्विलेंस एंड मॉनिटरिंग सिस्टम रिपोर्ट के लान्च के दौरान कहा, “मानकों से कम और नकली दवाइयां उन लोगों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है जो हाशिए पर है क्योंकि इनकी पहुंच महंगी चिकित्सा सेवा तक नहीं हैं।
श्री गैबरेयेसस ने कहा, “ऐसे उत्पाद या दवाइयां बीमारियाें को ठीक नहीं कर पाते और लोगों को बीमारियाें से लंबे समय जूझना पड़ता है। एेसी दवाओं से धन की हानि के अलावा हमारा विश्वास भी समाप्त होता है। ऐसी दवाओं के कारण लोगों की जान जाती है, स्वास्थ्य संबंधी गंभीर परेशानियां खड़ी होती है और ये दवाएं प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है।
रिपोर्ट के अनुसार नकली और घटिया दवाओं में एंटीबायोटिक और मलेरिया रोधी दवाएं सबसे आम हैं। नकली और घटिया दवाइयों में कैंसर से लेकर गर्भनिरोधक दवाएं तक आती हैं। ऐसे सर्वाधिक मामले अफ्रीका में पाये जाते हैं। इनसे संबंधित वास्तविक मामले आंकडों की तुलना बहुत अधिक हैं।
डब्ल्यूएचओ के ‘दवा, टीकाकरण और फार्मास्यूटिकल्स तक पहुंच’कार्यक्रम के सहायक महानिदेशक मैरिंगेला सिमाओ ने कहा, “नकली और घटिया दवाइयां न केवल मरीजों और उनके परिवारों के लिए भी कष्ट का कारण बनती हैं बल्कि इनसे सूक्ष्म जीवरोधक क्षमता पनपने का भी खतरा है। इससे दवाओं के इस्तेमाल से उपचार करने की क्षमता में भी गिरावट आ रही है।”
श्री गैबरेयेसस ने इसे वास्तविकता बताते हुए सरकारों से इसके बचाव, पहचान और समाधान के लिए कदम उठाने की अपील की। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 से 141 देशों में 550 नियामकों को इस समस्या के समाधान के लिए प्रशिक्षण प्रदान करना इस दिशा में प्रगति कही जा सकती है। जितने अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा उतने ही अधिक मामले डब्लयूएचओ के समक्ष आएंगे।