नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने आज कहा कि मध्यस्थता के जरिये किसी भी विवाद के निपटारे में ‘न्यूनतम हस्तक्षेप’ और ‘अधिकतम निपटारे’ के सिद्धांत पर अमल किया जाना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति मिश्रा ने इंडियन काउंसिल ऑफ आर्बिट्रेशन (आईसीए) द्वारा यहां आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहा कि मध्यस्थता के जरिये विवादों के निपटारे में अदालतों का हस्तक्षेप नगण्य होना चाहिए, साथ ही विवादों के निपटारे की प्रतिशतता अधिक से अधिक होनी चाहिए।
आने वाले समय में मध्यस्थता के क्षेत्र में भारत का दुनिया में विशेष स्थान होने का दावा करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विवाद निपटारे की वैकल्पिक प्रणाली के तौर पर संस्थागत मध्यस्थता मील के नये-नये पत्थर तय करेगी।
उन्होंने कहा, “संस्थागत पंचाट का भारत में लंबा भविष्य है, बशर्ते मध्यस्थों द्वारा जारी फैसले केवल कागजी शेर बनकर न रह जाये। यह व्यवस्था अन्य तदर्थ व्यवस्थाओं से अत्यधिक प्रभावी है। हमें इसमें दिनोंदिन सुधार की व्यवस्था पर विचार करना होगा।”
अर्थव्यवस्था में कानून की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि दोनों साथ-साथ चलते हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था कोई एकल घटना नहीं है। ऐसी स्थिति में मध्यस्थता एवं परामर्श (संशोधन) अधिनियम 2015 की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
उन्होंने कहा कि यदि भारत निवेश आकर्षित करना चाहता है तो यहां संस्थागत पंचाट प्रणाली को विकसित करना होगा, जिसमें अदालती हस्तक्षेप न के बराबर हो।