
बिजयनगर। गुरु पन्ना की पुण्यधरा बिजयनगर एक बार फिर धर्ममयी बनने जा रही है। नानक सम्प्रदाय के संघनायक मुनि प्रियदर्शन व साध्वी प्रमुख कमलप्रभा जी के सान्निध्य में मुमुक्षु संस्कृति सालेचा जैन परम्परा के कठिन मार्ग पर चलने के लिए दीक्षा लेंगी। दीक्षा महोत्सव गुरुवार व शुक्रवार को होगा। पढ़ें खारीतट संदेश की यह विशेष रिपोर्ट…
बिजयनगर। (खारीतट सन्देश) जैन आर्हती प्रव्रज्या महोत्सव के तहत शुक्रवार को मुमुक्षु बहिन संस्कृति सालेचा (बोहरा) का ओजस्वी वक्ता, संवर प्रेरक, संघनायक गुरुदेव प्रियदर्शन मुनी जी म.सा. एवं प्रखर चिंतिका, साध्वी प्रमुख कमलप्रभा जी म.सा. के सान्निध्य में दीक्षाभिषेक किया जाएगा। दो दिवसीय दीक्षाभिषेक कार्यक्रम का आगाज गुरुवार से होगा। आयोजन से जुड़े गुमानसिंह कर्नावट ने बताया कि महोत्सव के तहत गुरुवार दोपहर 12:15 बजे महावीर भवन से भव्य वरघोड़ा निकाला जाएगा। तत्पश्चात दोपहर 2:15 बजे केसर महुर्तू का आयोजन होगा, सांय 7:30 बजे मुख्य आयोजन स्थल कृषि उपज मंडी परिसर में मुमुक्षु बहिन का अभिनन्दन समारोह होगा। शुक्रवार को सुबह 7:30 बजे सथाना बाजार स्थित ज्ञानचन्द सिंघवी के निवास स्थान से वीर थाल एवं महाभिनिष्क्रमण यात्रा का आयोजन किया जाएगा। इसके बाद कृषि उपज मंडी परिसर में सुबह 9 बजे से प्रवचन कार्यक्रम के पश्चात हजारों श्रावक-श्राविकाओं की मौजूदगी में मुमुक्षु संस्कृति सालेचा का भव्य दीक्षाभिषेक होगा।
नानक सम्प्रदाय की राजधानी है बिजयनगर – मुनि प्रियदर्शन
प्र. आप संघनायक हैं और आपके नेतृत्व में यह पहला दीक्षा कार्यक्रम होना है। ऐसे में आपके मनोभाव क्या हैं?
उ. फैक्ट्री, परिवार और व्यवसाय में जितनी बढ़ोत्तरी होती है, मालिक और परिवार का मुखिया उतना ही प्रफुल्लित होता है। ठीक इसी प्रकार जिनशासन में जब-जब साधक की वृद्धि होती है तो हमें भी प्रसन्नता होती है। यदि जिनशासन में साधक बढ़ेंगे तो हमें गरिमा और संघ बढ़ाने में प्रसन्नता होती है। इससे अधिक से अधिक लोगों का आत्मकल्याण करने में सहायता मिलती है। दीक्षा देने वाले गुरु पन्ना हैं यह उन्हीं का मंगल आशीर्वाद है। हम साधु संत तो मात्र एक माध्यम है। यह सब कुछ उन्हीं की कृपा से होता आ रहा है। गुरु पन्ना ने जो बगिया लगाई है, हम उसे ही सींच रहे हैं।
प्र. इस आयोजन के लिए आपने सिर्फ बिजयनगर संघ को अनुमति प्रदान की इसके पीछे क्या भावना रही?
उ. विनतियां सब तरह की आती हैं, लेकिन भूमि का आकर्षण सबसे महत्वपूर्ण होता है। मुझे ऐसा लगता है कि गुरु पन्ना, गुरु सोहन के परमाणु बिजयनगर में ऐसे विद्यमान हो चुके हैं जो ऐसे आयोजन करवाने के लिए सदैव आकर्षित करते हैं। हमारे यहां द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चारों का आधार होता है। बिजयनगर शहर इन सबमें सटीक है। बिजयनगर नानक सम्प्रदाय की राजधानी है। ऐसे में किसी भी कार्य की शुरुआत यहां से हो तो वे सफल अवश्य होते हैं।
प्र. आप जैन समाज और क्षेत्रवासियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
उ. वर्तमान परिपे्रक्ष्य में सावधानियां महत्वपूर्ण है, जिनमें दिखावा कम हो, स्वधर्मी लोगों का जीवन स्तर सुधारने में प्रयास हो, समाज में संस्कार बढ़े और दुव्र्यसनों का खात्मा हो ताकि भारत राष्ट्र एक सभ्य समाज वाला राष्ट्र बन सके। जैन समाज में कुछ कुरीतियां व्याप्त हैं जैसे-भोजन में दर्जनों आयटम, नॉनवेज के नाम पर वेज आयटम परोसना, फ्लेवर हुक्का के नाम पर नशे का इस्तेमाल, महिला संगीतों में खुलकर फुहड़बाजी करना, आतिशबाजी कर पर्यावरण प्रदूषित कर जीवों को नुकसान पहुंचाना इन सबकों बंद करने के लिए युवाओं को अलख जगानी होगी। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा धार्मिक शिविरों से जोडऩा होगा, पाश्चात्य संस्कृति को बंद करना होगा। आजकल राष्ट्रभक्ति कम और नुकसान ज्यादा किया जा रहा है। हमारा शरीर भी राष्ट्र की सम्पति है। यदि दुव्र्यसनों में पड़कर शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं, जीवों को सताते हैं। सम्पति को नुकसान पहुंचाते हैं, पैसों की हैराफेरी करते हैं, सम्पति में बेइमानी करते हैं, सामानों की अदला-बदली करते हैं, मिलावटखोरी करते है तो यह राष्ट्रभक्ति नहीं कहलाती है। आपको सच्चा राष्ट्रभक्त बनना है तो स्वयं को संयमित रखते हुए पवित्रता से जीवन जीना होगा।
संयम के पथ पर चलने को तैयार हूं – मुमुक्षु संस्कृति
प्र. आप महज 16 वर्ष की हैं। इतनी कम उम्र में आपने वैराग्य का जो निर्णय लिया है वो काफी साहस भरा है। ऐसा क्या हुआ जो आपने वैराग्य की राह चुनीं?
उ. पहले मेरा मन नहीं था कि मैं वैराग्य पथ पर चलूं, लेकिन मुझे मम्मी-पापा ने यह सोचकर श्री विनयप्रज्ञा जी म.सा. के पास छोड़ा कि कोई न कोई तो मेरे घर से दीक्षा ग्रहण करे। उस समय में 11 वर्ष की थी और कक्षा छह में पढ़ रही थी। ऐसे में जब भी छुट्टियों में म.सा. श्री के पास जाती तो म.सा. श्री यही पूछते कि तू यहां रह तो जाएगी। मेरा जवाब यही रहता जी रुक जाऊंगी। तभी से म.सा. श्री जी से अच्छा सम्पर्क बन गया और उन्होंने बताया कि दीक्षा ग्रहण कर सकोगी तो मैंने दीक्षा के लिए हामी भर दी। मुझे वैराग्य के बारे में पहले से ही बहुत कुछ सीखने को मिल चुका है और मैं संयम के पथ पर चलने के लिए तैयार हूं।
प्र. आप अपनी शिक्षा और स्वयं के बारे में कुछ बताएं?
उ. मैंने कक्षा छह तक की पढ़ाई माता-पिता के साथ रहकर पूरी की थी, उसके बाद 7वी, 8वीं व 10वीं तक की पढ़ाई म.सा. श्री के सान्निध्य में रहते हुए पूरी की। मेरे पापा का सन्नत-हैदराबाद में स्टील का बिजनेस है, मम्मी गृहणी है और एक छोटा भाई दक्ष श्री गौतम मुनि जी म.सा. के सान्निध्य में रह रहा है। आगे चलकर उसका भी दीक्षा का भाव है।
प्र. घर में मम्मी-पापा के बाद आप दोनों भाई-बहन हैं और आप दोनों ही दीक्षा अंगीकार कर लेंगे तो उसके बाद मम्मी-पापा का क्या होगा?
उ. हम दोनों भाई-बहन वैराग्य जीवन अंगीकार करके दीक्षा ग्रहण करें उसके लिए पापा-मम्मी दोनों तैयार हैं। आपका सवाल है कि फिर पापा-मम्मी के पास कौन रहेगा उस पर मेरा जवाब यहीं है कि दुनिया में कई ऐसे माता-पिता भी हैं जिनके कोई संतान नहीं होती है, तो क्या वो अपनी जिंदगी नहीं जीते हैं। हम दोनों भाई बहनों का यह सौभाग्य है कि हमें ऐसे वीर माता-पिता मिले हैं।
प्र. जैन समाज और खासकर मातृशक्ति को क्या संदेश देना चाहेंगी?
उ. हम सभी को आत्मिक शांति धर्ममय और गुरुवंतों के सान्निध्य में रहकर ही मिलती है। हम सभी को धर्म से सदैव जुड़े रहना चाहिए। मातृशक्ति से मेरा यही अनुरोध है कि आप अपने बेटे-बेटियों को संतों के सान्निध्य में अवश्य रहें। यदि हमेशा नहीं रख पाते हैं तो कम से कम छुट्टियों में तो अपनी संतानों को साधु-साध्वियों के यहां धर्म शिक्षा ग्रहण करने के लिए अवश्य छोड़ें।
‘खिल रही नानक सम्प्रदाय की बगिया”: सिंघवी
प्र. सामाजिक/धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप आप मुमुक्षु के धर्मपिता बनकर कैसा अनुभव कर रहे है?
उ. मैं आज बहुत खुश हूं कि मेरे समक्ष नानक सम्प्रदाय की बगिया खिलती जा रही है। मैं ईश्वर से यहीं कामना करता हूं कि प्रियदर्शनमुनि जी म.सा. एवं साध्वी कमलप्रभा जी म.सा. के सान्निध्य में अधिक से अधिक दीक्षाएं हों और सम्पद्राय इसी प्रकार फलता-फूलता रहे।
प्र. आप समाजसेवी हैं और मुमुक्षु संस्कृति सालेचा के धर्मपिता बनकर दीक्षा महोत्सव के लाभार्थी बनें हैं। यह प्रेरणा आपको कहां से और कैसे मिली। कुछ बताएं?
उ. बचपन से मेरे दादाजी गुरु पन्नालाल जी म.सा. से परम भक्त थे, आचार्य प्रवर सोहनलाल जी म.सा. ने मुझे धार्मिक कार्यों से जोड़ते हुए संस्थाओं में सेवाएं देने के लिए चुना। मेरी सदैव इच्छा रही कि इस नानक वंश में इस प्रकार की दीक्षाएं रोजाना हो। मेरी धर्म सहायिका सुनिता सिंघवी का मुमुक्षु संस्कृति सालेचा के वैराग्य जीवनकाल से आत्मिक जुड़ाव हुआ। इन्होंने मुझे पूर्व में ही कह दिया था कि इनकी दीक्षा में हमें धर्म माता-पिता बनकर बिजयनगर में ही दीक्षा दिलवानी है। उसके बाद हमने मुमुक्षु सालेचा के सांसारिक माता-पिता रिखबचन्द-संतोष जी सालेचा से दीक्षा बिजयनगर में करवाने की अनुमति ली। अब संघ नायक प्रियदर्शन मुनि जी म.सा. एवं साध्वीश्री कमलप्रभा जी म.सा. के साथ जैन संघ से भी स्वीकृति मिलने के बाद यह शुभ बेला आई है।
प्र. समाज और शहरवासियों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
उ. बिजयनगर जैन समाज ही नहीं वरन सभी समाजों के लिए पुण्य अवसर है कि उनके शहर में ऐसे धार्मिक आयोजन की स्वीकृति मिली है। इस आयोजन को करवाने के लिए देशभर के संघ विनति लिए कतार में खड़े थे, लेकिन यह अवसर गुरु पन्ना की तपोस्थली बिजयनगर को मिला है। समाजबंधुओं को यही संदेश देना चाहता हूं कि हम सभी एकजुट होकर ऐसी संयमित आत्माओं की दीक्षा करवाने और धर्म के प्रसार में जुटे रहें।