बिजयनगर। स्थानीय आर्य समाज भवन में साप्ताहिक सत्संग एवं हवन कार्यक्रम के पश्चात धर्मचर्चा में आर्य प्रधान जगदीश आर्य ने मानव जीवन के पांच क्लेश (दु:ख) के बारे में बताते हुए कहा कि अविद्या स्मिता राग द्वेषाभिनेवशा के कारण मानव जीवन में दु:खी रहता है। पहला दु:ख अविद्या बताया है जिसमें सत्य को असत्य, पवित्र को अपवित्र, दु:ख को सुख, शरीर को आत्मा समझना के कारण हम दु:खी रहते हैं। विद्या द्वारा अविद्या का नाश होता है। दूसरा दु:ख अस्मिता अर्थात अहंकार के कारण आत्मा व बुद्धि दोनों को एक मानना अस्मिता दु:ख कहलाता है।
तीसरा क्लेश राग अर्थात एक बार भोगे गए सुख को बार-बार याद करके वापस उसकी इच्छा करना, उसके प्रति प्रेम रखना राग कहलाता है। चौथा दु:ख द्वेश यानि जिन वस्तुओं, व्यक्तियों द्वारा हमें दु:ख प्राप्त होता है, हमें उन वस्तुओं, व्यक्तियों से द्वेष (घृणा) हो जाती है, और हमारे मन में उन वस्तुओं एवं व्यक्तियों से बदला लेने की भावना बनी रहती है। पांचवां क्लेश अभिनिवेश यानि हम हमेशा रहेंगे, हमारी कभी मृत्यु नहीं होगी इसे अभिनिवेश कहते हैं। इन पांच प्रकार की अविद्या के कारण हम सुख से दूर हो जाते हैं। आजीवन दु:खी रहते हैं, इन दु:खों का मूल कारण हमारा अज्ञान है, इसलिए हमें ज्ञान द्वारा अज्ञान को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
यज्ञ में बैठने के लिए पंजीयन जारी
प्रधान जगदीश आर्य ने बताया कि 26 मार्च को होने वाले विशाल यज्ञ कार्यक्रम के हवन में बैठने वाले इच्छुक जोड़े और बिना जोड़े वाले व्यक्ति शीघ्र अपना पंजीयन करवा लें। हवन में बैठने वाले जोड़े की संख्या सीमित रखी गई है।