बिजयनगर। स्थानीय आर्य समाज भवन में आयोजित साप्ताहिक यज्ञ सत्संग के पश्चात आर्य प्रधान जगदीश आर्य ने परमात्मा ही बड़ा चिकित्सक है विषय पर बताया कि ऋग्वेद जो विश्व का प्राचीनतम ज्ञान-विज्ञान का ग्रंथ है। जिसे विश्व के सभी विद्वानों ने स्वीकार कर लिया है। जिसमें मानव शरीर की रचना, उसकी कार्यप्रणाली, स्वस्थ रहने के नियम, रोगों के कारण एवं निवारण आदि का विस्तृत विर्णन है। ऋग्वेद के मंडल 10 सूक्त 163 मंत्र 1 से 31 के पहले मंत्र में वर्णन किया है ‘अक्षीभ्यां ते नासिकाभ्यां कर्णाभ्यां धुबुकादधि,यक्ष्मं शीर्षण्यं मस्तिष्काज्जिहृाया वि वृहमि तै’ इस मंत्र में चिकित्सक के माध्यम से परमात्मा रोगी को समझा रहे है कि मैं तेरी आंखों के रोग को, तेरी नासिका के रोग को, तेरे कानों के रोग को, तेरी ठोड़ी रोग को, तेरे शिर के रोग को, तेरे मस्तिष्क के रोग को और तेरी जीभ के रोग को दूर करता हूं।
इस मंत्र की चर्चा से पता चलता है कि विश्व में हर रोग के अलग-अलग करोड़ों चिकित्सक है। परन्तु विश्व का मुख्य चिकित्सक परम पिता परमेश्वर ही है जो सभी चिकित्सकों को बताता है कि किस रोगी की चिकित्सा किस प्रकार करनी है। कभी-कभी किसी चिकित्सक से उचित चिकित्सा नही हो पाती है, तो उस चिकित्सक को परमेश्वर द्वारा बतायी चिकित्सा को ठीक प्रकार नही कर पाता है तो उसमें रोगी को लाभ की अपेक्षा हानि हो जाती है तो उसका दोष परमात्मा का नही है, उसमें साकार चिकित्सक दोषी है। निराकार चिकित्सक दोषी नहीं है, क्योंकि परमात्मा का स्वयं का ज्ञान सभी क्षेत्रों में पूर्ण है, जबकि मानव का ज्ञान अल्प ही होता है अत: हम सभी को परमात्मा के ज्ञान को पूर्ण जानना और मानना चाहिए।