परीक्षा परिणाम के बाद अब स्कूलों में नामांकन का दौर शुरू हो गया है। बेहतर शिक्षा और छात्र-छात्राओं के व्यक्तित्व विकास के लिए कौन सा स्कूल बेहतर होगा, इसके लिए अभिभावकों ने भाग-दौड़ शुरू कर दी है। बेहतर स्कूल का चयन अभिभावकों के लिए एक बड़ी चुनौती है। खारीतट संदेश ने उन सभी पहलुओं पर गौर किया है जिसकी अभिभावकों को दरकार है। पढ़ें विशेष रिपोर्ट…
बिजयनगर। आज के आधुनिक और विकसित दौर में शिक्षा प्रणाली का बेहतर होना उतना ही जरूरी है जितना कि जीवन में भोजन। क्योंकि बेहतर शिक्षा प्रणाली से ही बच्चों के बेहतर भविष्य का रास्ता बनता है। ऐसे में अपने बच्चों के लिए सही स्कूल का चुनाव करना किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं है। जिस प्रकार मार्केट में किसी भी सामान की आपको ढेरों वैरायटी और अलग-अलग ऑफर मिल जाते हैं ठीक उसी प्रकार से आजकल शिक्षा के क्षेत्र में भी कम्पटीशन बहुत बढ़ गया है। निजी स्कूल भी अपने स्तर पर खूब प्रचार प्रसार करते हैं। ऐसे में अपने बच्चों के लिए सही स्कूल का चयन करना बहुत ही कठिन हो गया है। माता-पिता की ये चाहत होती है कि उनके बच्चों को अच्छी और संस्कारित शिक्षा मिले ताकि उसका भविष्य बेहतर हो सके। ऐसे में अभिभावकों का ये मानना होता है कि जितना महंगा स्कूल होगा वहां उतनी ही अच्छी पढ़ाई होगी, लेकिन यह बात किस हद तक सही है, इन्हीं बिन्दुओं को शामिल करते हुए हमने शिक्षाविदों से चर्चा की।
शिक्षकों की अहम भूमिका
हर बच्चे के लिए उसका स्कूल उसका दूसरा घर होता है जिसमें शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि बच्चे के जीवन में शिक्षक की भूमिका माता-पिता के समान होती है, ऐसे में अध्यापकों का व्यवहार और बच्चों के प्रति उनका आचरण काफी हद तक बच्चों की ग्रोथ पर निर्भर करता है। इसलिए, अभिभावकों को स्कूल का चुनाव करते समय विद्यालय के वातावरण, शिक्षकों की दक्षता व अनुशासन को लेकर कितनी सक्रियता अपनाई जाती है, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
ट्यूशन के दौर से बचें
अमूमन देखा जाता है कि बड़े स्कूल के बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन भी पढऩे जाते हैं, जबकि वे इससे पहले तकरीबन साढ़े पांच घंटे तक स्कूल में पढ़ चुके होते हैं लेकिन घर आते ही नाश्ता करके दुबारा घंटों ट्यूशन के लिए निकल जाते हैं। ऐसा क्यों? अत: स्कूल का चयन हमेशा उसकी बेहतर शिक्षा प्रणाली को देखकर करना चाहिए ताकि विद्यार्थी को स्कूल के बाद ट्यूशन की आवश्यकता न पड़े। इसके लिए स्कूल संचालकों को भी चाहिए कि क्लास में बच्चों की संख्या कम रखते हुए प्रत्येक बच्चे पर विशेष ध्यान दे और उसे विषय से सम्बंधित सभी सवालों के जवाब भी मिले ताकि उसे शिक्षा बेहतर ढंग से प्राप्त हो सके।
पढ़ाई के साथ एक्सट्रा करिक्युलर एक्टिविटीज जरूरी
अभिभावकों को चाहिए कि स्कूल में एडमिशन करवाते समय जरूर देखें कि वहां पढ़ाई के साथ बच्चों को एक्सट्रा करिक्युलर एक्टिविटीज भी करवाई जाये ताकि बच्चों का पढ़ाई के साथ सर्वांगीण विकास भी हो सके। साथ ही खेलकूद को लेकर भी बहुत से बच्चों में जिज्ञासा होती है तो उनको उनकी खूबी देखते हुए प्रेरित करें और छोटे बच्चों को खेल-खेल के माध्यम से पढऩे का अवसर देने के साथ ही स्कूल से खिलाड़ी भी तैयार करें।
क्या महंगे स्कूल ही बेहतर शिक्षा देते हैं
शिक्षा के क्षेत्र में होते विस्तार के कारण हमारे क्षेत्र में कई ऐसे स्कूल हैं जिनकी फीस हर वर्ष बढ़ती ही जाती है, ऐसे में सामान्य वर्ग का व्यक्ति अपने बच्चों को वहां पढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। ये जरूरी नहीं की सिर्फ महंगें स्कूल ही अच्छी शिक्षा दें सकते है। कई बार ये भी देखा जाता है कि सामान्य निजी विद्यालय व सरकारी स्कूलों के बच्चे भी अच्छे प्रतिशत बनाकर भविष्य में कई सफलता हासिल करते हैं।
दो और महात्मा गांधी स्कूल में होंगे प्रवेश
पालिका क्षेत्र में इसी वर्ष से दो और नवीन महात्मा गांधी स्कूलों में प्रवेश प्रक्रिया आरम्भ होगी जिसमें राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल राजनगर एवं वार्ड 35 स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक स्कूल (पानी की टंकी के सामने) शामिल हैं।
इनका कहना है
अपने बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाते समय अभिभावकों को ऐसे स्कूल का चयन करना चाहिए जहां पढ़ाई के साथ ही करिक्युलर एक्टिविटीज (सहगामी प्रवृत्तियां) भी करवाई जाएं। अधिकांशत: देखा गया कि प्राईवेट स्कूल सिर्फ बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बनाए रखते हैं। जबकि पढ़ाई के साथ सहगामी प्रवृत्तियों का भी बैलेंस होना चाहिए। वहीं छोटे बच्चों के प्रवेश के समय बच्चा खेल के माध्यम से पढ़ सके, साथ ही उसे उचित व्यवहार करने की सीख भी मिले, ऐसे स्कूल का चयन करना चाहिए। बड़े बच्चों के प्रवेश के समय ध्यान रखना चाहिए कि उस स्कूल में कक्षा ६ या ९ से सहगामी प्रवृत्तियां आवश्यक रूप से प्रैक्टिकल के साथ सम्पादित करवाई जाती हो। स्कूल संचालकों को भी नए स्टॉफ को रखने के साथ ही उसे 15 दिन की कक्षा शुरू होने से पहले टे्रनिंग देना आवश्यक है ताकि टीचर क्लास में बच्चों में अनुशासन, बच्चों के सवालों के जवाब अच्छे से दे सके। यह आवश्यक नहीं कि बच्चा बड़ी स्कूल में ही पढ़ेगा तो अच्छे माक्र्स लाएगा, मध्यम वर्ग के स्कूल में पढ़कर भी बच्चा टॉप कर सकता है।
जीवराज जाट, शिक्षाविद्, जालिया द्वितीय
स्कूल में शिक्षकों का स्तर बेहतर हो, विद्यालय में शैक्षिक और सह-शैक्षिक गतिविधियों का संचालन हो, सिलेबस को लेकर विशेष ध्यान हो, महंगी और ज्यादा किताबों के बजाय जितनी आवश्यक किताबें हो वहीं लागू की जाए। स्कूल में अनुशासन को लेकर नियम सख्त हो ऐसी स्कूल में अभिभावकों को अपने बच्चे का प्रवेश करवाना चाहिए। स्कूल संचालकों को भी चाहिए कि वे विद्यालय में साढ़े पांच घंटे के समय में बच्चों पर पढ़ाई को लेकर विशेष ध्यान दे, ताकि बच्चों को स्कूल के बाद अनावश्यक ट्यूशन नहीं जाना पड़े। अमूमन देखा जाता है कि पेरेंट्स छोटे-छोटे बच्चों को भी स्कूल के बाद घंटों ट्यूशन भेजते हैं जिससे बच्चों में ट्यूशन जैसी प्रवृत्ति बन जाती है जिससे वे स्वयं घर पर नहीं पढ़ पाते है।
चारू वर्मा, शिक्षाविद्, गुलाबपुरा