प्रदेश के स्कूलों में परीक्षा परिणाम के बाद अब स्कूलों में छात्र-छात्राओं का नव प्रवेश शुरू हो गया है। निजी स्कूल अधिक से अधिक बच्चों के प्रवेश के लिए ‘प्रयास’ करेंगे, वहीं सरकारी स्कूलों में भी नामांकन का प्रतिशत बढ़ाने पर जोर रहेगा। इन परिस्थितियों में अभिभावकों के समक्ष ‘सही स्कूल का चयन’ एक बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। निजी स्कूलों में महंगी फीस, दूरी सहित अन्य कारण भी अभिभावकों के लिए बाधक बनते हैं। इन्हीं सब परिस्थितियों में बेहतर स्कूल का चयन अभिभावकों के लिए चुनौती भरा और जिम्मेदारी वाला कार्य है। आखिर, अभिभावक अपने आने वाली पीढ़ी को बेहतर से बेहतर शिक्षा देना चाहेंगे ही, जिसमें संस्कार का पुट भी हो। हालांकि कई स्कूलों में खेलकूद सहित अन्य गतिविधियां आयोजित होते रहती हैं, जबकि कुछ स्कूल इसकी उपेक्षा करते हैं। दरअसल, खेलकूद से बच्चों की शारीरिक दक्षता बढ़ती ही है उनमें टीम भावना भी उत्पन्न होती है। स्मरण रहे कि बाल मन में खेल-कूद एक अभिन्न अंग है।
आग्रह है कि इसे किसी भी सूरत में ताक पर नहीं रखा जाना चाहिए, न अभिभावकों के स्तर पर और न ही स्कूलों के स्तर पर। कई बार नामांकन के बाद निजी स्कूल फीस में बढ़ोतरी कर देते थे, लेकिन कोरोनाकाल के बाद काफी कुछ स्थिति बदली है। इसमें कोई शक नहीं कि निजी स्कूलों की भी कोरोनाकाल में आर्थिक स्थिति चरमरा गई थी। वहीं कई अभिभावकों की नौकरियां छूट जाने से उनके समक्ष भी आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था। लेकिन अब धीरे-धीरे ही सही, समय अनुकूल होता जा रहा है। इसके बावजूद न्यूनतम फीस में नौनिहालों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराना भी राष्ट्रधर्म ही है। फीस चाहे कुछ भी हो लेकिन छात्र-छात्राओं को एक बेहतर नागरिक बना कर राष्ट्र को सौंपने की जिम्मेदारी स्कूलों की तो है ही, अभिभावकों की भी है। एक अच्छे नागरिक का निर्माण राष्ट्र निर्माण में योगदान से कतई कम नहीं होता। स्कूल संचालकों के संकल्प, अभिभावकों की प्रतिबद्धता और छात्र-छात्राओं के कर्तव्यनिष्ठा से ही एक सुसभ्य नागरिक बनेगा। स्मरण रहे कि स्कूली शिक्षा का असर जीवन पर्यंत छात्र-छात्राओं में रहता है। जयहिन्द।
दिनेश ढाबरिया, सम्पादक