जन-भावना का आदर जरूरी

चुनावी साल में जनता को सौगात देने में राज्य की गहलोत सरकार की कोई सानी नहीं है। चाहे वह नए जिले बनाने की घोषणा हो या फिर शिविर आयोजित कर आम जनता को महंगाई से राहत दिलाने की बात हो, गहलोत सरकार कोई न कोई सौगात लेकर आम जनता तक अपनी पहुंच को और मजबूत बना रही है। इन सौगातों में क्या खूबी है और क्या खामी है, इसकी चर्चा तो खूब हो रही है लेकिन उसका असर चुनाव परिणाम ही बताएगा।

फिलहाल, आम जनता को सौगात देने के क्रम में गहलोत सरकार ने बिजयनगर राजकीय चिकित्सालय को उपजिला बनाने का दर्जा दे दिया है। हालांकि इस चिकित्सालय में चिकित्सकों के कई पद और कई तकनीकी पद अर्से से रिक्त हैं। सरकार ने इस चिकित्सालय को उपजिला का दर्जा देते हुए स्टाफ की संख्या 100 करने की घोषणा कर दी है, लेकिन इन पदों पर नियुक्तियां कब होंगी, इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। गरज यह कि सरकार ने बिजयनगर को उपजिला का दर्जा दिया है, इसके लिए सरकार को साधुवाद। लेकिन इस चिकित्सालय में स्वीकृत पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति करने की पहल भी करनी चाहिए, तभी इस सौगात की सार्थकता यहां की जनता महसूस कर सकेगी। वर्ना, चुनावी साल में सौगातों की खामी और खूबी बताने वाले चिकित्सकों और अन्य टेक्निकल स्टाफ के रिक्त पदों को भरने का मुद्दा तो उठाएंगे ही। चुनावी साल है, घोषणाओं और सौगातों पर जमीनी स्तर पर कोई पहल नहीं हुई तो इसके साइड इफेक्ट होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता। उम्मीद की जानी चाहिए कि गहलोत सरकार बिजयनगर चिकित्सालय को उपजिला दर्जा देने के बाद यहां के रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया तेज करेगी।

अब बात दूसरी, बिजयनगर तहसील को नवसृजित केकड़ी जिले में शामिल करने के राजकीय स्वीकृति के बाद आमजन का आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है। इस मुद्दे पर स्थानीय विधायक व जनप्रतिनिधि भी बिजयनगर तहसील को अजमेर जिले में यथावत रखने की पुरजोर पैरवी कर रहे हैं। इसके बावजूद बिजयनगर को नवसृजित केकड़ी में शामिल कर यहां की जनता को एक तरह से सरकार ने एक ज्वलंत मुद्दा थमा दिया है। यह मुद्दा बजाय थमने के और गरमाते जा रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधि कैलाश गुर्जर बिजयनगर तहसील संघर्ष समिति के बैनर तले धरना तो कुछ लोगों के साथ ही शुरू किया था लेकिन इसमें आमजन की सहभागिता बढ़ती जा रही है। शहर के हर वर्ग ने इस संघर्ष समिति को अपना समर्थन देते हुए शुक्रवार को एक दिवसीय सांकेतिक बिजयनगर बंद की घोषणा कर दी है। बंद का स्वरूप क्या होगा, यह तो शुक्रवार शाम तक ही पता चलेगा लेकिन सरकार को जन-भावना का आदर करते हुए इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। स्मरण रहे कि विरोध का यह कारवां बढ़ता ही जाएगा, इसमें संशय नहीं। जय हिन्द।
दिनेश ढाबरिया, सम्पादक

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