
– जय एस. चौहान –
बिजयनगर नगर पालिका में आकाओं की मेहरबानी हो तो पांच रुपए का सिक्का उछालने पर नीचे गिरेगा तो 10रु. का सिक्का हो सकता है। इसे हाथों का हुनर मानें, कारीगरी या फिर दिमाग का शातिरपन। मर्जी आपकी।
आकाओं के शागिर्दों के लिए कुछ भी संभव है, और कुछ भी असंभव नहीं। मुफ्त की एक दुकान की शर्त पर कूटरचित दस्तावेज को ‘असली’ का जामा पहना सकता है तो मुफ्त की दो दुकान की शर्त पर ‘लैला-मंजनू’ से साक्षात्कार भी करवा सकता है। सिकन्दर और पोरस की लड़ाई भी ‘लाइव’ दिखा सकता है साहब! ‘स्मार्ट सिटी’ है जनाब! ‘स्मार्ट सिटी’ में सब कुछ चलता है। जय-जय!
खूबियों से भरे बिजयनगर नगर पालिका में एक आम आदमी को एक अदद पट्टे के लिए एडिय़ां घिस जाती हैं, वहीं पहुंच वालों के लिए रियासतकालीन दस्तावेज में हेरफेर कर पट्टा बनाना भी ‘सुलभ’ है। जाहिर है, पालिका से अनजान खिलाड़ी यह ‘खेल’ नहीं कर सकता।
इस खेल में और कौन-कौन शामिल है, और नगर पालिका में यह सुलभता कौन उपलब्ध करा रहा है, इसकी पहचान भी उजागर होनी चाहिए।
सवाल यह भी है कि नगर पालिका में और कितने इस तरह के फर्जी (कूटरचित) पट्टे बनवाए गए, इसकी पड़ताल भी की जानी चाहिए। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से किन-किन लोगों ने गोपालसिंह राठौड़ के कंधे का इस्तेमाल किया, या फिर मुकेश अग्रवाल जैसे और कितने लोग हैं जो उसके जाल में फंसा, इन सभी पहलुओं की बारीकी से जांच-पड़ताल करने की जरूरत है।
दीमक की तरह नगर पालिका की साख को बट्टा लगाने वालों पर सख्ती बरतने की जरूरत है। सख्ती हुई तो कई और बेनकाब हो सकते हैं। इंतजार कीजिए…।