
गली-कूचों तक में घर-घर जाकर टिप्पर से कचरा एकत्र किए जा रहे हैं, इसके बावजूद लोग लोटा लेकर खुले में शौच को जा रहे हैं तो इसे बेशर्मी की पराकाष्ठा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
– जय एस. चौहान –
इन दिनों देश में स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 चल रहा है। बिजयनगर नगर पालिका ओडीएफ (खुले में शौचमुक्त) का प्रमाण पत्र के साथ पुरस्कृत भी हो चुकी है। ऐसे में शहर के एक सरकारी स्कूल के खेल मैदान में पसरी गंदगी कई सवाल खड़े कर रहीे हैं।
जिस स्कूल में सैकड़ों बच्चे अध्ययन के लिए आते हैं उस स्कूल के मैदान में पसरी गंदगी स्कूल प्रबंधन सहित स्थानीय सभी जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों की उदासीनता का ही परिचायक कहलाएगा।
क्या बच्चे महज स्वच्छता के लिए जागरूकता रैली निकालने के लिए ही हैं? उनके स्कूल परिसरों की साफ-सफाई नहीं की जानी चाहिए? यदि हां, तो फिर स्कूल मैदान की इतनी बेकद्री क्यों? परिसर में समाजकंटकों के जमावड़े और गंदगी मौन क्यों? जिस मैदान में बच्चों को धमाचौकड़ी, खेलकूद, ऊंची-लम्बी छलांग लगानी चाहिए, क्रिकेट, फुटबाल, वॉलीबाल, बैडमिंटन खेलने चाहिए, उस मैदान में बच्चे गंदगी से बच कर निकलते हैं, फिर भी जिम्मेदारों को शर्म नहीं आती? यह शहर के लिए शर्म की बात है कि आज भी लोग इस मैदान में लोटा लेकर सुबह-शाम शौच के लिए जाते हैं।
निश्चित ही यह ओडीएफ प्रमाण पत्र को मुंह चिढ़ाने जैसा करतूत है। इस पर पूरी तरह रोक लगाने की जरूरत है। खारीतट संदेश ने पूर्व के अंक में भी उल्लेख किया था कि शहर की साफ-सफाई रखना सिर्फ और सिर्फ नगर पालिका का काम नहीं है।
शहर को स्वच्छ रखना न तो सिर्फ पालिका अध्यक्ष और न ही सफाई अधिकारी के बूते की बात है। नगर पालिका को आम लोगों का सहयोग चाहिए ही। आम जनता के सहयोग के बिना शहर को पूर्ण रूप से साफ-सुथरा नहीं रखा जा सकता। केन्द्र से लेकर राज्य सरकार पिछले तीन वर्षों से देश की जनता को स्वच्छता का संदेश दे रही है।
स्कूली बच्चे रैलियां निकाल कर स्वच्छता का संदेश दे रहे हैं, स्वच्छता को लेकर कार्यशाला-संगोष्ठी हो रहे हैं, गली-कूचों तक में घर-घर जाकर टिप्पर से कचरा एकत्र किए जा रहे हैं, इसके बावजूद लोग लोटा लेकर खुले में शौच को जा रहे हैं तो इसे बेशर्मी की पराकाष्ठा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। शहर को स्वच्छ बनाने के लिए ऐसे लोगों के साथ अब बजाय मनुहार के सख्ती बरतने की जरूरत है।