होलिका जल गई, प्रहलाद मुस्कुराता हुआ बाहर आया

  • Devendra
  • 01/03/2018
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बिजयनगर। (डेस्क) भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को ‘होलिका’ पर्व मनाने का विधान है। प्रत्येक त्यौहार का प्रादुर्भाव पौराणिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। स्कनध पुराण के अनुसार ‘अंधकासुर’ दैत्य को ब्रह्माजी ने वरदान दिया था कि वह किसी के द्वारा नहीं मारा जाएगा। केवल भगवान शंकर के पुत्र द्वारा ही उसका वध होगा।

यह वरदान प्राप्त कर अंधकासुर अभिमान से अभिभूत होकर पृथ्वी पर अत्याचार करने लगा। सभी देवता मिलकर भगवान शिव के विवाह की युक्ति खोजने लगे। ‘इन्द्र’ के आदेशानुसार कामदेव को ‘भोलेनाथ’ को रिझाने के लिए भेजा। भगवान शिव समाधि में लीन थे। कामदेव ने अपना ‘कामबाण’ शिवजी पर छोड़ा। ‘महादेव’ की समाधि भंग हो गई।

उनके तीसरे नेत्र की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गया। जिस दिन कामदेव भस्म हुआ वह दिन फाल्गुन शुक्ला अष्टमी का दिन था। कामदेव के भस्म होने से पृथ्वी पर सभी मांगलिक कार्य रुक गए। सृष्टि में शोक छा गया। आठ दिन तक कामदेव की पत्नी रतिवति महादेव के सामने विलाप करती रही। ये आठ दिन शोक संतप्त दिवस बन गए।

इन्हें हम आज भी ‘होलाष्टक’ के रूप में याद करते हैं। इन आठ दिनों में समस्त मांगलिक एवं शुभ मुहुर्त आदि कार्य बन्द रहते हैं। आठवें दिन ‘भगवान शिव’ को दयाभाव पैदा हुआ पुन: कामदेव को जीवित कर दिया। फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा को कामदेव को जीवित किया। इस दिन को हम ‘होलिका’ के रूप में हर्षोल्लास का त्यौहार मनाते हैं। रंग-गुलाल उड़ाते हैं। नाचते, कूदते, गाते हुए एक-दूसरे के गले मिलते हैं। यह उत्सव कामदेव के पुनर्जीवित होने की खुशी में मनाया जाता है।

भागवत पुराण के अनुसार ‘हिरण्यकुश’ नाम के असुर के घर भक्त ‘प्रहलाद’ का जन्म हुआ। हिरण्यकुश ने ब्रह्माजी से अमरता का वरदान प्राप्त किया। ब्रह्मा ने वरदान दिया। कि तुम नर-नारायण, पृथ्वी-आकाश, अस्त्र-शस्त्र, दिन-रात में किसी से भी नहीं मरोगे। ‘प्रहलाद’ ईश्वर का पूर्ण भक्त था। उसकी ‘ईश्वर भक्ति’ से हिरण्यकुश को बहुत ईष्र्या थी।

अत: वह उसे नाना प्रकार से कष्ट देता था। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा तक उसे असह्य यातनाएं दी गई। पर्वत से फेंका, पागल हाथी से रौंदा। लगातार आठ दिन तक यातनाएं दी। ये आठ दिन विश्व में यातना दिवसों के रूप में होलाष्टक कहलाए। ईश्वर भक्त प्रहलाद को यातना देने के कारण संसार में इन आठ दिनों तक शोक छा गया, कोई शुभ व मंगल कार्य नहीं होता था। समस्त शुभ कार्य बन्द हो गए।

इन्हीं आठ दिनों को हम होलाष्टक के रूप में आज भी याद करते हैं। आठवें दिन प्रहलाद को होलिका (भुआ) की गोद में बिठा कर ‘अग्निकुण्ड’ में डाल दिया। होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकुश का विचार था कि ‘प्रहलाद’ जल जाएगा और ‘होलिका’ बच जाएगी। किन्तु ईश्वर की असीम कृपा से ‘होलिका’ उस अग्नि में जल गई। प्रहलाद मुस्कराता हुआ बाहर आ गया।

यह दिन फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा का दिन था। प्रहलाद के सकुशल अग्नि से निकल जाने की खुशी में उत्साह मनाया गया। रंग-गुलाल डालते हुए नाचते-गाते एक-दूसरे को बधाई देने लगे। आज भी हम इस दिन रंग-गुलाल उड़ाते हुए नाचते-गाते चंग बजाते हुए एक-दूसरे से गले मिलते हैं। उत्साह के साथ होली का पर्व मनाते हैं। होली के रूप में हम बुराईयों को जलाते हैं। खुशियाँ मनाते हैं।
(यह लेख पुराणों पर आधारित है)

होलिका दीपन मुहुर्त
फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा का क्षय होने से इस वर्ष फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी गुरुवार को (एक मार्च) को सांयकाल ७ बजकर ३५ मिनट बाद होलिका दीपन मुहुर्त रहेगा। क्योंकि चतुर्दशी के दिन पूर्णिमा का प्रवेश प्रात: ८ बजकर ५७ मिनट से होगा, किन्तु इस दिन भद्रा प्रवेश भी प्रात: ८ बजकर ५७ मिनट से हो जाएगा जो सांय ७ बजकर ३८ मिनट तक रहेगा। ‘भद्रा काल’ में होलिका दीपन वर्जित है। अत: प्रदोष काल में ७ बजकर ३५ मिनट बाद ही होलिका दीपन मुहुर्त शास्त्र सम्मत है।

शीतला पूजन मुहुर्त
वैसे तो शीतला पूजन सप्तमी अथवा अष्टमी को जिस दिन सौम्य वार हो, उस दिन किया जाता है। किन्तु इस वर्ष चैत्र कृष्णा सप्तमी को गुरुवार हैं और चैत्र कृष्णा अष्टमी को शुक्रवार है। दोनों ही सौम्य वार हैं, लेकिन चैत्र कृष्णा सप्तमी को मध्यान्ह २ बजकर ५२ मिनट तक ‘भद्रा वास’ रहेगा। भद्रा काल में शीतला पूजन वर्जित है। अत: शीतला पूजन चैत्र कृष्णा अष्टमी शुक्रवार को दिनांक ९ मार्च को करना ही शास्त्र सम्मत है।
पं. रामगोपाल शर्मा, ज्योतिषाचार्य, गुलाबपुरा

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